Thursday, November 21, 2013

सर्दी की लम्बी रातें


गुलाबी सर्दियों का मौसम शुरू हो रहा है
फैला रही है ठण्ड धीरे धीरे अपने पाँव ..
कोहरे की चादर तान कर स्याह सर्द रात
लम्बी होती जा रही है ..
तुम्हें तो पता नहीं है
न ही होगा
क्यूँ हो जाती हैं लम्बी रातें .
यह सुनते ही
पता है मुझे ,तुम अभी के अभी
सारा विज्ञान,भूगोल समझाने लगोगे
पर..असली कारण
जो है एक राज़
तुमको बताती हूँ
मेरे करीब आओ तुम्हें
सब का सब समझाती हूँ .

जश्न हैं ..ये रातें
मुहब्बत की गर्माहट का
स्वीट नथिंग्स की फुसफुसाहट का
बाहों की कसमसाहट का
होठों की नरमाहट का
क्यूंकि
इनमें ही खिलते हैं
फ़ूल मुहब्बत के
बिखरती है खुश्बू
देह से देह तक
और अलसाया रहता है तन मन
सोचते नहीं थकता है
कि काश...
ज़रा और लम्बी होती रात
तो थोड़ा सा ज़्यादा
मिल जाता तुम्हारा साथ

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार को (22-11-2013) खंडित ईश्वर की साधना (चर्चा - 1437) में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार...!!

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  2. बहुत सुंदर रचना.

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  3. खूबसूरत..मदहोश रातें..
    तुझसे मुमकिन सौगातें..

    अंतर्मन तक सीधी जाती..सुन्दर रचना..:-)

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    Replies
    1. शुक्रिया!
      जाड़ा मुबारक़ हो!!

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सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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