Sunday, April 14, 2013

अपाहिज

.

आजकल सब अधूरा सा क्यूँ है ?
दिल दर्द से भरा पूरा सा क्यूँ है
बड़ी अजीब से हैं दिन और रात
अनमने से सारे जज़्बात
क्यूँ किसी काम में मन नहीं लगता
क्यूँ यह जीना जीने सा नहीं लगता .
तेरे बिन.

सोचती रहती हूँ कारण....
शायद,
तुझसे बात नहीं होती
मुलाक़ात नहीं होती
इसलिए जी बेज़ार है .
मान ही लूँ कि अधूरी हूँ
तेरे बिन.

बस ख़्याल पूरे हैं
बाक़ी सब अधूरा
मेरा दिल ...मेरी धडकन
मेरा जी ......मेरी जान
सब कुछ अपाहिज सा
तेरे बिन .

11 comments:

  1. वाह !!! बहुत बढ़िया,उम्दा अभिव्यक्ति,आभार
    Recent Post : अमन के लिए.

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  2. तुम्हारी मर्जी बिना वक्त भी अपाहिज है,न दिन खिसकता है आगे,न आगे रात चले....

    बहुत प्यारी अभियक्ति है निधि....
    अनु

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  3. बेहतरीन सार्थक अभिव्यक्ति,आभार.

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  4. आपकी इस प्रविष्टि क़ी चर्चा सोमवार [15.4.2013]के चर्चामंच1215 पर लिंक क़ी गई है,
    अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए पधारे आपका स्वागत है | सूचनार्थ..

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    Replies
    1. शुक्रिया...मेरी रचना को शामिल करने के लिए

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  5. बस ख़्याल पूरे हैं
    बाक़ी सब अधूरा
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    सादर

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  6. हार्दिक आभार!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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