Friday, July 6, 2012

बेतरतीबी




अधिकतर लोग
कोई काम कायदे से नहीं कर सकते
जाना है ...चले जाएँ
पर जब जाएँ तो पूरी तरह
यह नहीं कि
अपना कुछ
कभी कहीं
इधर-उधर
छोड़ जाएँ.

इस तरह की बेतरतीबी
मुझे सख्त नापसंद है
औरों को क्या कहूँ
तुम खुद को ही ले लो
जाने को तुम चले गए
पर छोड़ गए
अपना कितना कुछ
मेरे भीतर ..
तुम्हें पता है या नहीं
वो अब भी सांस लेते है
जीते है ,मेरे अंदर .

कायदे से मिलना तो दूर की बात
तुम्हें तो ठीक से
बिछडना भी नहीं आया.

22 comments:

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    1. धीरेन्द्र जी...थैंक्स!!

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  2. बहुत सुन्दर निधि जी....
    बेहद प्यारी और सहज रचना.......

    अहा!ज़िन्दगी में-रात सहेली है ...पढ़ा.
    आप ही हैं न ???
    :-)
    बधाई
    अनु

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    Replies
    1. हाँ ,अहा ज़िंदगी में मेरा ही राईट अप है.उसके लिए और इस रचना के लिए...दोनों को पसंद करने के लिए...आभार!

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  3. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद!!

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  4. बेतरतीबी...अधिकतर प्रेम बेतरतीब ही होता है। उसको सजाने-संवारने का ढंग किसी को आता ही नहीं और उसका मिलना और बिछुड़ना बहुत ही मायावी भासित होता है। मिलन में सारा संसार उसी पर सिकुड़ जाता है और छोड़ी गई बेतरतीब चीजें बिछुड़न में भीतर-भीतर ही फैलती जाती हैं...बढ़ती जाती हैं...जंगल की तरह...और सुरक्षित रहती हैं...क्योंकि वे सिंचित होती हैं हृदय की भाव-भूमि में।

    संयोग और वियोग पक्ष का सुंदर प्रतीकात्मक चित्रण।

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    1. सुन्दर विश्लेषण !!बिलकुल सही तार पकड़ा आपने....मिलन में सारा संसार सिकुड़ता है बिछड के वही संसार आपके अंदर फैलता है....
      रचना ,आपको अच्छी लगी...जान कर मुझे खुशी हुई .

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  5. अरे!!!मेरी टिप्पणी को स्पैम निगल गई.

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    1. स्पैम से उगलवा ली मैंने.

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  6. यह नहीं कि
    अपना कुछ
    कभी कहीं
    इधर-उधर
    छोड़ जाएँ.
    साकारात्मक संदेश्। सुंदर भाव, सदैव की तरह...बहुत सुन्दर निधि जी

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    1. बहुत बहुत आभार...

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  7. प्रभावशाली रचना......

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    1. तहे दिल से शुक्रिया!!

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  8. कायदे से मिलना तो दूर की बात
    तुम्हें तो ठीक से
    बिछडना भी नहीं आया…………वाह क्या बात कह दी ………उम्दा प्रस्तुति।

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    1. हार्दिक धन्यवाद!!

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  9. निधि
    बेहद मार्मिक....आपकी हर कविता में से एक पंक्ति चुनना मुश्किल है...सभी में इतना भाव है, प्रेम है.
    हर बार आपके ब्लॉग पर आते वक्त सोचती हूँ, इस बार निधि ने किस रूप में उसे याद किया है, किस रूप में यादें संजोई है, किस तरह मैं एक बार फिर निधि से रिलेट कर पाऊँगी :-)

    आपको पढना मुझे बहुत सुकून देता है.

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    1. मुझे बहुत अच्छा लगा यह जान कर कि तुम मुझसे रिलेट करती हूँ और मेरा लिखा हुआ तुम्हें सुकून देता है.

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  10. Replies
    1. तुम्हें अच्छा लगा यह जान कर मुझे अच्छा लगा

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