Saturday, April 28, 2012

यहीं और अभी ...


मुझे नहीं करना इंतज़ार...
अब, और....
न जाने कितनी सदियों से मुझे तुम बरगला रहे हो
आगे भी यूँ ही बरगलाते रहोगे
कि प्रेम आता है..
उसके पास जो इंतज़ार करता है .
कितनी प्रतीक्षा और ...????
मुझे अपनी बातों के इस मकडजाल में
अब और ना उलझाओ .
अबकि ,
यही इसी बार
इश्क चाहिए...मुझे.
वो आये,मुझे मिले और मेरा होकर ही रहे .

प्लीज़,वो सब लोग
जो समझाने आये हैं ,
चले जाएँ .
मुझे अब और न भरमाएं.
मुझे नहीं सुनना...नहीं समझना कुछ
मुझे प्रेम चाहिए हर हाल में ..
अभी ...इस बार..यहीं
सुन रहे हो न...तुम???

15 comments:

  1. सुन रहा है............
    शायद दस्तक भी दी दरवाज़े में ......

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  2. आखिर इंतजार की भी कोई सीमा होती है... नाज़ुक अहसास...

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    1. कुछ लोग नहीं समझते.

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  3. बहुत भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  4. बेजोड़ भावाभियक्ति....
    भावों से नाजुक शब्‍द.....

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    1. हार्दिक धन्यवाद!!!

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  5. अगर अब भी नहीं सुन रहा होगा तो इंसान नहीं पत्थर होगा ... भावपूर्ण रचना

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  6. wah...bahut khub...behtareen bhav:-)

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  7. प्रेम और प्रतीक्षा ...नियती ने इन्हें उकेरा है एक ही सिक्के के दोनों ओर,बस इतनी से सुविधा दी है ....की देखते रहो कोई सा भी मनचीता रुख |कविता बच्चों की तरह जिद करती है मुझे चाँद चाहिए ,अभी चाहिए पूरा चाहिए ....यह बाल सुलभ हठ अच्छा लगता है | बधाई इसे यूँ लिख पाने के लिए |

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  8. हमारा असल मन तो यही कहता है। लेकिन दुनियादारी के बीच मे शायद हम इसको भी बदलने की कोशिश करने लगते है। आपकी इस कविता को पढ़कर लगा कि मैंने भी कितना कुछ बदलने की कोशिश कर रखी है। पर है तो यही जैसा आपने लिखा है। आपको पढ़ने पर कभी कभी एहसास होता है कि मैंने आईने के सामने बैठी अपने को देख रही हूँ।

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    1. इससे अच्छा कमेन्ट मुझे कोई नहीं लगता जब कोई यह कह दे कि आपका लिखा पढ़ कर लगता है कि मेरी बात कह दी,आपने.थैंक्स ...दोस्त.

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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