Thursday, February 21, 2013

खारापन



ज़िंदगी में से मिठास कहीं खो गयी है
हर ओर बस..तल्खियां ही तल्खियां हैं
तेरी-मेरी कुछ मजबूरियां है ...
साथ रहती केवल तनहाईयाँ हैं

गुज़रना चाहती हूँ ...महसूस करना चाहती हूँ
चखना चाहती हूँ
जीवन का हरेक स्वाद .
पर ...आजकल कोई ज़ायका
समझ में नहीं आता
खारेपन के अलावा .

क्या करूँ ???
तेरी आँख के
उस आंसू का खारापन
जाता ही नहीं ज़ुबां से

11 comments:

  1. सही कहा आपने जिंदगी की मिठास खो गई है,बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. जी..एक बार खो जाए यह मिठास तो मुश्किल होता है इसे ढूँढ पाना ,दोबारा

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  2. प्रेम के भाव में डूबी खूबसूरत नज़्म

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  3. "क्या करूँ ???
    तेरी आँख के
    उस आंसू का खारापन
    जाता ही नहीं ज़ुबां से "

    खारेपन से जुबां छिल जाये तो कोई स्वाद नहीं मिलता....!

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    1. सही कहा,पूनम.जुबां छिली हो तो कोई स्वाद नहीं आता

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  4. बहुत सुन्दर और मर्मिक.

    ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
    क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये

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  5. पता नही क्यूँ जिन्दगी की सारी मिठास जाने कहाँ गुम सी गई है,,,,

    Recent post: गरीबी रेखा की खोज

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  6. प्रेम की चासनी जब आएगी ... खारापन दूर हो जायगा ...
    प्रेम के एहसास को जीने की आदत में डालना ही ठीक होता है ...

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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