
मैं,ये तो नहीं कहूँगी कि .....
तुम्हें देखने को तरसती हूँ
पर ,तब भी तुम्हारी झलक भर दिख जाने से
जो खिल जाती थी मैं एकदम से
अब वैसा नहीं होता
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता,....शायद !
बिन तुम्हारे...........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि.......
तुम्हारी यादों के सहारे जीती हूँ
पर,तब भी तुम छाये हो मेरे अस्तित्व पर
और न चाहते हुए भी याद आते हो बार-बार
दिल रोता है जार-जार
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता ..........शायद !
बिन तुम्हारे ...........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि.....
तुम्हारी कमी खलती है
पर,तब भी कुछ रीत सा गया है मेरे भीतर
संभवतः मेरा कुछ तुम्हारे साथ गया है
जिसे मैं ढूंढती रहती हूँ शाम ओ सहर
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !
बिन तुम्हारे..........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि......
जीवन में स्नेह की कमी है
पर,तब भी वो तुम्हारा कुछ कहना,मेरा रूठ जाना
मुझे रूठा जान तुम्हारा मुझको मनाना
अब इन बातों का अस्तित्व ही मिट गया है
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !
बिन तुम्हारे..........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि......
तन्हाई डसती है
पर,तुम्हारे साथ जो दिन गुजार जाते थे पल से
वो अब सदियों से लगते है
काटे नहीं कटते हैं
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !
बिन तुम्हारे..........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि......
मैं अब नहीं लिखूंगी
पर,कभी जो लेखनी स्वयं चलती थी
वो आज मेरा साथ नहीं देती
चाह के भी लफ़्ज़ों पे पकड़ नहीं जमती
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !
बिन तुम्हारे..........
मैं ये तो नहीं कहूंगी कि......
जीवन कटता ही नहीं
पर,तेरे साथ से जो भरा था ,
नवीनता,उत्सुकता,सरसता से
वहाँ मात्र शेष है नीरवता,एकरसता
इसलिए मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता........शायद !
इस "शायद " को आज मैं अगर छोड़ दूं
और निर्भय होकर सबसे कह दूं
कि बिन तुम्हारे मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता
क्यूंकि,ये जीवन .........
जीवन सा नहीं लगता .
मैं खुद को अधूरी लगती हूँ ,
कुछ भी पूरा नहीं लगता .