Sunday, March 9, 2014

उम्रक़ैद

तुमने हमेशा कहा
किसी को तुम अपने करीब नहीं आने देते
इस सब के बावजूद
तुम्हारे जीवन में मैं आयी
तुमसे बिन पूछे
जबरन तुम्हारे दिल में जगह भी बनायी.
इधर कुछ दिनों से लगता है कि
हर एक बात पर
तुम मुझे एक तख्ती दिखा देते हो
कि
घुसपैठियों का प्रवेश मना है
और यह धृष्टता मैंने करी है
तो इसकी सज़ा लाजमी है
तुम बता दो कि
सज़ा मेरी क्या होगी
मुझे जाना होगा
तुम्हारे दिल को छोड़
अपनी दुनिया में वापस
या फिर तेरे दिल में ही रहने की
उम्र क़ैद मुझे मयस्सर होगी.

6 comments:

  1. धृष्टता की है सज़ा तो लाज़मी है -उम्र कैद !

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  2. waah ji isme saza kaisi , aapka to hak banta hai na ....:))

    bahut sundar

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  3. प्रेम भरी रचना ... जाने देना उन्हें भी कहाँ आसाँ होगा ...

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  4. गिरफ़्त में क़ैद हो जाएँ..
    क़ैद में गिरफ़्त हो जाएँ..

    कोई जवाब..रहा कहाँ..!!


    बेहद ख़ूबसूरत रचना.. :-)

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  5. निधि जी आपकी इस रचना को कविता मंच पर साँझा किया गया है

    संजय भास्कर
    http://kavita-manch.blogspot.in

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