तेरे प्यार का रंग इतना पक्का
कि उससे पहले के चढ़े सारे रंग
उस एक रंग के आगे फीके पड़े
आगे कोई रंग चढ़ने की
ज़रा सी गुंजाइश नहीं
छुड़ाना चाहा ..छूटना चाहा
पर चाहने से ही सब हो जाता
तो दुनिया मेरी क्या से क्या होती
होली के रंगों को देख कर
बीता गुज़रा न जाने क्या-क्या याद आता है
तुझे ओढना ... तुझे लपेट लेना
तुझे छूना ...तेरा हो जाना
तुम्हारे रंग में डूब
तुम्हारे नशे में चूर
केवल इस तरह आता है
होली खेलना मुझे
होली रंगीन तभी है
जब तू आस पास कहीं है
और गर तेरी कमी है तो ..
होली ,होली नहीं है
khub
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ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संदीप उन्नीकृष्णन अमर रहे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मुबारक ऐसी होली आपको भी.. :-)
ReplyDeleteबेहतरीन..