तुमने हमेशा कहा
किसी को तुम अपने करीब नहीं आने देते
इस सब के बावजूद
तुम्हारे जीवन में मैं आयी
तुमसे बिन पूछे
जबरन तुम्हारे दिल में जगह भी बनायी.
इधर कुछ दिनों से लगता है कि
हर एक बात पर
तुम मुझे एक तख्ती दिखा देते हो
कि
घुसपैठियों का प्रवेश मना है
और यह धृष्टता मैंने करी है
तो इसकी सज़ा लाजमी है
तुम बता दो कि
सज़ा मेरी क्या होगी
मुझे जाना होगा
तुम्हारे दिल को छोड़
अपनी दुनिया में वापस
या फिर तेरे दिल में ही रहने की
उम्र क़ैद मुझे मयस्सर होगी.
ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
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धृष्टता की है सज़ा तो लाज़मी है -उम्र कैद !
ReplyDeletewaah ji isme saza kaisi , aapka to hak banta hai na ....:))
ReplyDeletebahut sundar
प्रेम भरी रचना ... जाने देना उन्हें भी कहाँ आसाँ होगा ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteगिरफ़्त में क़ैद हो जाएँ..
ReplyDeleteक़ैद में गिरफ़्त हो जाएँ..
कोई जवाब..रहा कहाँ..!!
बेहद ख़ूबसूरत रचना.. :-)
निधि जी आपकी इस रचना को कविता मंच पर साँझा किया गया है
ReplyDeleteसंजय भास्कर
http://kavita-manch.blogspot.in