स्याह सी खामोशियों के
इस मीलों लंबे सफ़र में
तन्हाइयों के अलावा ..
साथ देने को दूर-दूर तक
कोई भी नज़र नहीं आता .
जी में आता है
कि कहीं तो एक उम्मीद दिखे
कोई तो हो हमक़दम
जिसके हाथों को थाम के चलें.
पर फिर वही डर...वही खटका
मन का ...
कि गर कोई मिल भी गया
तो..................
बीच राह में वो छोड़ कर न जाए
मुझे कुछ और खाली
कुछ और अधूरा सा
न कर जाए .
उनका क्या हो जो लोग जन्मते ही हैं ...ज़िंदगी का सारा खालीपन और उदासी अपने में समेटने के लिए .