Saturday, January 19, 2013

झरने को अभिशप्त




ये हरसिंगार के फूल
जब -जब झरते हैं
नारंगी और सफ़ेद
दोनों रंग इनके
मुझपे नशा बन चढ़ते हैं

नारंगी ..
आग सा ..दहकता
तुम्हारी याद दिलाता है
तुम और तुम्हारा प्यार
आँखों के आगे आ जाता है

सफ़ेद..
शांत सी पंखुरियाँ
मेरी लाज की बेडियाँ
ढेरों अनकही बतियाँ
न जाने कितनी मजबूरियां
मेरी जनी ..हमारी दूरियां

हर रोज रात के ..
उस घुप्प अँधेरे में
फूलता है,महकता है..
ज़िंदा होता है हमारा साथ.

सवेरा होते ही
हो जाता है हकीकत से रूबरू
झरने को अभिशप्त ....
हरसिंगार सा हमारा प्यार.

(प्रकाशित)

20 comments:

  1. हर रोज रात के ..
    उस घुप्प अँधेरे में
    फूलता है,महकता है..ज़िंदा होता है हमारा साथ.,,

    सुंदर भावपूर्ण रचना,,

    recent post : बस्तर-बाला,,,

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  2. बहुत कोमल अहसास..सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  3. बहुत सुन्दर...
    झरा सा..महका सा...तुम्हारा प्यार और वो ....
    <3
    अनु

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  4. कोमल भावो की अभिवयक्ति .......

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  5. ये प्यार यूं ही बना रहे ... हार सिंगार खिलता रहे ...
    कोमल एहसास जिए हैं रचना में ...

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  6. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  7. रंगों में प्यार.....!
    रंगों से प्यार....!!!

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  8. बहुत प्यारा बिम्ब चुना है ॥सुंदर प्रस्तुति

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  9. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  10. बेहद खूबसूरत एहसास से लबालब..!!! सुंदर..

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  11. आपकी यह कविता प्रेम की उद्दात भावनाओं को प्रकट करती है

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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