Thursday, June 27, 2013

जेठ-आषाढ़


जेठ की तपती दुपहरी थी
गरम साँसों के बीच
लू भी जी जलाती थी.
तब...एकाएक
उसने कहा कि
वो दूर जाने वाला है
कुछ दिन का विरह
बीच में आने वाला है .

मैंने कहा,बता कर जाना
उसका कहना कि
मुझसे कहे बिना क्या
संभव होगा उसका जा पाना ?

वो गया ...
जब चला गया...
दुनिया ने बताया
जब लौटा ..तब भी....
जग ने ही खबर दी
उसकी वापसी की
बताने की ज़रूरत उसे
महसूस ही नहीं हुई .
उसकी ज़िंदगी वैसे ही
मेरे बिन भी चलती रही .

बड़े दिन बाद
एक दिन बात हुई
शिकवे हुए शिकायत हुई
पर,
उसकी आवाज़ की ठंडक
कलेजे के खून को जमा गयी
आषाढ़ के महीने में भी
रिश्तों में से गर्माहट
न जाने कहाँ गयी .

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए आभार!

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  2. सटीक कथ्य- बहुत शानदार पंक्तियाँ

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  3. Painful it is!

    Very beautifully written Nidhi.

    :-)
    Shaifali
    http://guptashaifali.blogspot.com/2013/07/blog-post_8.html

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    Replies
    1. दर्द भी एक पहलू है जीवन का ,शैफाली.

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  4. सिलसिले जारी रहें तो गर्मी लौट आती है ... आशाड भी तो किसी दिन खत्म हो जाता है ..

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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