
..बराबरी के हक के लिए
लड़ती हूँ ....आंदोलन करती हूँ
चर्चाओं में शामिल होती हूँ
धरने ,मीटिंग में जोरदार भाषण देती हूँ
खूब तालियाँ बटोरती हूँ
सब को प्रेरित करती हूँ
कि औरतें आगे बढे ...बराबरी पे आये .
पर ,
अपने घर से झूठ बोल कर निकलती हूँ
वक्त पे घर पहुँचने के लिए सारा वक्त घडी देखती हूँ
तालियाँ बटोरकर...घर पहुँच ,गालियाँ बटोरती हूँ
घर में हरेक शख्स का फूला हुआ मुंह देखती हूँ
पति का भाषण सुनती हूँ
करवट लेकर,रोते-रोते
बिना कुछ खाए सो जाती हूँ
अगले दिन ,सवेरे
इसी सब से प्रेरणा लेकर
लिखती हूँ एक भाषण
औरत की बराबरी पर
औरत के हक पर
फिर निकल पड़ती हूँ
नारी की अस्मिता ,अस्तित्व
पर चर्चा करने
परिस्थितियाँ बदलने ...
(प्रकाशित)