Saturday, December 31, 2011

नए का स्वागत करो...!!


मैं क्या हूँ...तेरी ज़िंदगी मैं
क्या मायने हैं,मेरे
क्यूँ,मिले हम -तुम
सोच रही हूँ,आज कई दिन से

मैं एक पुराना रिश्ता...
जो नींव बना नए रिश्ते की
मैं...खुश हूँ
कि मैं सेतु बन पायी
जिससे गुजर कर...
तुम पहुँच पाए नयी दुनिया तक
मैं, वो ख्वाब जो पूरा न होकर भी
सितारे छू लेने की, आगे बढ़ने की
हर ख्वाहिश बढ़ा देता है .

पुराने को विदा ...नए का स्वागत ....हैप्पी २०१२

Thursday, December 29, 2011

रोशनी ही रोशनी



तुम....अलग
मैं....अलग.
अलग-अलग होने के बाद भी
कायदे से हम अगर मिल जाएँ...
तो,
विपरीत ध्रुव होने के बाद भी
सही कनेक्शन जुड़ने से
जैसे....
सर्किट पूरा हो जाता है,
बिजली दौडने लगती है.
वैसे ही ..
सब सही हो जता है ...
हमारे बीच.
रोशनी ही रोशनी
मन के अंदर भी ...
और बाहर भी .

Wednesday, December 28, 2011

कुहासे की चादर



कुहासे की इस चादर को...
पर्दा बना लें ,क्या?
जी भर के इन गुलाबी सर्दियों का
मज़ा ले लें,क्या ?

देखो,न
ईश्वर ने भी तुम्हारी सुन ली
तुम्हारी इस हिचकिचाहट
कि कहीं कोई देख न ले ..
..से तुम्हें मुक्ति दे दी

आओ,ना मेरे आगोश में
सच...इस कोहरे को काटने की कैंची
किसी के पास नहीं है ..
जब तक सूरज नहीं आता
भगवान ने ,हमें,
प्यार करने का वक्त दे रखा है

Tuesday, December 27, 2011

जंगल



जंगल....
बिलकुल तुम्हारी आँखों जैसे हैं..
मुझे बुलाते हैं बड़ी शिद्दत से.....
ये अपने करीब.

इनमें जाने का भी मन करता है
डर भी लगता है
कि,
कहीं....
रास्ता ही न भूल जाऊं मैं
ताउम्र ,भटकती ही न रह जाऊं मैं .

Sunday, December 25, 2011

यू एस पी


तुम और मैं
दो विपरीत व्यक्तित्व
तब भी चुम्बक की तरह
एक दूजे की ओर खिंचे चले आये...
क्या सच...विपरीतता ही आकर्षण का कारण बनी
या
मेरी जो कमियां हैं वो तुम पूरी कर देते हो
और तुम्हारा अधूरापन मैं भर देती हूँ ..
एक दूसरे के पूरक हो गए हैं हम.

एक दूजे को ... संपूर्ण कर देना ही ..
हमारे इस रिश्ते की यू एस पी है ..है न?!!

Friday, December 23, 2011

प्रेमांकुर


मेरे मन की
इस बंजर धरा पर ..
प्रेम के अंकुर
फूटे हैं....
पहली बार .
तुम ही कारण हो
इसको बनाने में उर्वरा .
स्नेह रस की वर्षा के बाद
जब-जब चाहत की फसल उगेगी
तुम याद आओगे,बेइंतिहा ....

Thursday, December 22, 2011

गुलाबी सर्दियाँ



सर्दी में...
हमारे बीच यह दूरियां ........

मेरी इन गर्म साँसों का...
इन आहों का...
धुंआ ....
क्या पहुंचता है तुम तक
कोहरे के साथ ,
और छूता है तुम्हारे चेहरे को,
सहला देता है ....

गुलाबी हो जाते हैं ...
गाल,नाक ,चेहरा
ठण्ड के कारण ही ...है न ???

Thursday, December 15, 2011

चाहोगे न ?




मैं वाकिफ हूँ इस बात से
कि,मेरे साथ
बड़ा कठिन है निबाह पाना
साथ चल पाना,प्यार कर पाना .

तुम जानते हो कई बार
मैं बिना किसी कारण
तुम्हें कटघरे में खडा कर देती हूँ
इतना धकेलती हूँ कि..
तुम्हारे पास जीतने का कोई चारा नहीं बचता
तुम हारते नहीं हो
बस,मेरा दिल रखने को
हार मान लेते हो .
सोचते हो कि ..
आखिर कहाँ ,कब,कौन सी गलती तुमसे हुई
जिसके लिए मैंने ऐसा किया ...

सच कहूँ,तो तुम गलत नहीं होते हो
गलत ...मैं होती हूँ.
क्यूंकि,
मैं समझ नहीं पा रही
गले नहीं उतार पा रही ...सीधी -सिंपल सी यह बात
कि तुमसा बेहतरीन इंसान ...
मुझमें ऐसा क्या देखता है?
मुझे भला क्यूँ इतना चाहता है ?
एक अनजाना सा डर मुझे घेर लेता है
ये डर ही सब ऊलजलूल कहलाता ,करवाता है
यह डर...
कि ,तुम कहीं भूल तो नहीं जाओगे मुझे
कमियां जान कर छोड़ तो नहीं दोगे मुझे
मैं कुछ छिपा नहीं रही,अपनी गलती से न भाग रही
कोई बहाना भी नहीं बना रही
बस,इतना कह रही...
कि ,जब मुझे समझ पाना कठिन होता है
मेरी थाह पाना बहुत मुश्किल होता है
उस वक्त...उन क्षणों में
जिनमें ,तुम्हें कुछ कहना चाहती हूँ पर बता नहीं पाती
जो बोलना चाहती हूँ वो जतला नहीं पाती
तब ....ही...
मैं तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ
तुम्हारे बिन जीवन की कल्पना नहीं कर पाती हूँ.

कोई मुझे इतनी शिद्दत से कैसे चाह सकता है ..
यह सवाल रात-दिन परेशान करता है ,आजकल .
सोचती हूँ ,कोहरे की चादर में लिपटी किसी सुबह
इस प्रश्न को किसी गहरी घाटी में फेंक आऊँ
जिससे दोबारा ये मन की झील में हलचल न मचाये
क्यूंकि,पता तो है ,मुझे
जैसी हूँ...सारी खूबियों -खामियों के साथ
मुझे चाहते हो तुम ...हमेशा चाहोगे
चाहोगे न...?

Monday, December 12, 2011

नया हुनर




वक्त.......बड़ा कमबख्त
सरपट दौड़ा जाता है..
आजकल उसके पीछे भाग रही हूँ ..
सारा दिन इसी कोशिश में लगी हूँ ...
कि
वक्त की गिरह से
कुछ लम्हें चुरा लूं .


ऐसे कुछ लम्हे जिनमें
केवल हों ...
"मैं" और "तू".
उन क्षणों में न हो कोई दरमियाँ
जी लें उनमें ....हम सदियाँ .


देखो,समय की जेब क़तर पाती हूँ या नहीं ?
कतरे जो झरेंगे,वो समेट पाती हूँ या नहीं ?
आखिर,कुछ पलों को ...
तेरे साथ को पा लिया
देख न...तेरे प्यार ने
एक नया हुनर सिखा दिया
मुझे खुद नहीं पता चला
कब गिरह्कटी का इल्म आ गया .

Friday, December 9, 2011

परिणत




इतना असहाय क्यूँ कर देता है प्रेम????
इतना परवश कभी नहीं हुई थी,मैं.
अपना कुछ है ही नहीं
मन ,विचार,संवेदना,भावना
सब तुमसे शुरू तुम पे खतम.

जिधर तुम..
उस ओर रही
उस ओर बही .
मैं ..मैं ही नहीं रही
तुझमें ही व्याप्त होकर
तुझमें ही परिणत हो गयी.

Thursday, December 8, 2011

अचानक......



अचानक .......
ज़िंदगी की इस राह पे
चलते-चलते
एक मोड पर
तुम मिल गए ..
जुड गयी तुमसे
बंध गयी तुमसे

अब,
जब भी कोई पूछता है
कि क्या है हमारे बीच
तो ,जवाब देते नहीं बनता


हरेक उस रिश्ते से ऊपर रखती हूँ ,इसे
जिनमें ,मैं जो नहीं हूँ वो दिखाती हूँ
दूसरों के मन मुताबिक ढलती जाती हूँ
क्यूंकि
यही बेनाम सा रिश्ता
जो तेरे मेरे दरमियाँ है
मेरी अस्मिता को सुरक्षित रख
मुझे जीने की वजह देता है .

Saturday, December 3, 2011

इतना याद आना




किस बात पे याद आते हो?
कितना याद आते हो?
क्यूँ याद आते हो??????
बड़ा मुश्किल होता है
ये सब बही खाते ..
रख पाना .
इसलिए ,
जब भी याद आना
मेरी जान...
हर बात पे याद आना
बिना किसी कारण याद आना
बेहिसाब याद आना
मैं खुद को भूल जाऊं
बस,इतना याद आना.

Friday, December 2, 2011

हरसिंगार




मैं,
आजकल............
रातों में ,
सोती नहीं हूँ .
तुम्हारे साथ ,तुम्हारे पास होती हूँ.
तुम्हें,पता है,न !
रात भर मिल कर......
हम ढेरों बातें करते हैं ...

सारी रात .....
सांसें चढती हैं,
धडकनें बढ़ती हैं .
हरसिंगार की कलियों को
जैसे फूलों में बदलते हैं .

सवेरा होते ही
बिस्तर छोड़ देती हूँ
देखती हूँ कि
तुम पास नहीं हो
नारंगी डंठल वाले
वो सफ़ेद फूल
ज़मीं पर बिखरे पड़े हैं
और ...मेरा बदन
खुशबू से महक रहा है .

Wednesday, November 30, 2011

विस्मरण ही मुश्किल है ...




मेरी ज़िंदगी बदलने को
वो शख्स आया था .
जीना सिखाया...उसने .
देने का सुख ,
बेहतर है लेने से
मुझे बताया ...उसने.

आज,
जब वो गया कह कर
भूल जाना मुझे....
कोशिश करना दिल से,
कि भूल पाओ मुझे
तो.....
समझा गया
कि
सरल बहुत है..याद करना
विस्मरण ही मुश्किल है .

Friday, November 25, 2011

आज ,कुछ नया करते हैं



आज, कुछ नया करते हैं
बहुत वक्त से प्यार की बात कर रहे हैं
आज, चलो..प्यार करते हैं .

सोचा है....
एक नया संगीत रचेंगे
धडकनों के सुर पर थिरकेंगे
साँसों की ताल पर बहकेंगे
कुछ नया करेंगे....

सोचा है...
एक नया नशा करेंगे
एहसासों के जाम पीयेंगे
जज्बातों के नशे में झूमेंगे
कुछ नया करेंगे .....

सोचा है...
कुछ नया लिखेंगे
तेरे मेरे लबों पर
जो टिके हुए हैं बरसों से
वो हर अलफ़ाज़ बहेंगे
कुछ नया करेंगे ...

सोचा है.....
एक नयी तरह जलेंगे
बदन से बदन तक
जो तपिश जाती है
आज उसमें तपेंगे
कुछ नया करेंगे ...

सोचा है....
नयी मंजिलें तय करेंगे
हरेक दीवार गिरा देंगे
सारी दूरियां मिटा देंगे
कुछ नया करेंगे....

प्यार की बातें बहुत हो चुकीं
आज... बस, प्यार ..सिर्फ प्यार करेंगे
प्यार ही खोजेंगे
प्यार ही पायेंगे
प्यार में ही डूबेंगे
प्यार मं ही तरेंगे
बस..................
प्यार ही करेंगे .

Tuesday, November 22, 2011

बहुत उलझन में हूँ..............


बहुत उलझन में हूँ.....
समझ ही नहीं आ रहा
क्या करूँ?
खुद को खुद से जुदा कर
कैसे जियूं ???

तुम जाने वाले हो ....
बस,इसका है पता...
बाक़ी ,किसी चीज़ का
कोई होश नहीं .

बस, एक सवाल कि
करूँ तो क्या करूँ?????
अभी से थोड़ी दूरी बढ़ा लूँ..
मैं खुद को तैयार कर लूँ..
या चलने दूँ ...
जैसा सब चल रहा है
जो ,जब,जैसा होगा
उस वक्त देखा जाएगा .

दूरी बढाती हूँ..
तुम्हारी भी तकलीफ बढाती हूँ
अपने को भी परेशान पाती हूँ
पर,
जैसे -जैसे तेरे जाने का दिन
करीब आएगा
तुझे मुझसे दूर ले जाने के लिए .
सब सहन करना ...
सह कर जी पाना
मुश्किल नहीं ..
बहुत मुश्किल होगा
मेरे लिए .

खुद को तैयार करूँ...
अधूरेपन के लिए
अभी से
या
उस दिन,उस वक्त का
इंतज़ार करूँ .
तू ही बोल न...
क्या करूँ?????????

Saturday, November 19, 2011

बीती रात


बीती रात
कुछ ऎसी बात हुई ..
बेमौसम बरसात हुई
सच है ..
मुझको खुशियाँ रास नहीं आती
जैसे ...
कुछ लोगों को रिश्ते रास नहीं आते
वो गरजना...वो बरसना मुझ पर
भिगो गया मेरा मन ...

बहुत फिसलन भरी हैं..
प्यार की रहगुज़र
संभालना ...खुद को
कहीं साथ छूट ना जाए
और बस मलाल रह जाए ...ताउम्र

Tuesday, November 15, 2011

मेरी पहचान



कोई पहचान नहीं थी ...तुमसे
अब भी कुछ खास नहीं है...
पता नहीं क्यूँ??
फिर भी ...
मेरे दिल से एक आवाज़ आती है
कि कुछ तो है...
हमारे बीच ...

तनहा होती हूँ
तो...
रूह को कहते सुना है
कि
मेरी ही रूह का एक हिस्सा हो तुम
जो कहीं खो गए थे..
...अब मिले हो जाकर के
मेरा वजूद ...मेरी पहचान हो तुम.

Sunday, November 13, 2011

रेलगाड़ी की पटरियां


मेरे शहर के करीब से होकर....
वो तेरा गुज़रना...
रेल से.
तुम्हारा,
मन नहीं हुआ..
कि,मिलते चलो .
सदा ....
ऐसे ही रहेंगे क्या ,हम?
रेलगाड़ी की पटरियों की तरह
साथ चलते हुए भी..
कभी न मिल पाने को ...मजबूर .

Wednesday, November 9, 2011

जीना चाहती हूँ


जबसे,
गए हो तुम
बहुत तन्हां हूँ मैं .
अपना अता पता भी मालूम नहीं
खुद की कोई खोज खबर नहीं

आओ............
तो, मैं मिलूं खुद से
तुमसे होकर ही...
मैं खुद तक पहुँच पाती हूँ .
जीवन को बहुत ढो चुकी हूँ ,
अब जीवन को जीना चाहती हूँ ....बिंदास !!

Monday, November 7, 2011

बातें जो खत्म नहीं होतीं



आओ ...
एक बार फिर....
सारी रात गुज़ारे ...साथ -साथ
वक्त गुजरने का पता न चले..

ओस की बूंदों से अंजुरी भरें
भोर की पहली किरण हँसे
और कहे...
अभी भी जाग रहे हो...तुम दोनों
सोना नहीं है क्या ?
ऐसी कौन सी बातें हैं
जो कभी खत्म ही नहीं होती .

Saturday, November 5, 2011

पास रहना




तुम खफा हो जाते हो
मेरी गलतियों पर..
अक्सर, मेरी बेवाकूफियों पर
अपनी नाराज़गी भी जतलाते हो .
तुम खूब नाराज़ हो..खफा हो
मुझे कोई दिक्कत न कभी हुई है न होगी
मुझे पता है ,मैं तुम्हें मना लूंगी .

जो कभी यूँ हुआ
कि
तुम नहीं माने...
तो ,
सज़ा देना ....
मैं,हर सज़ा मानने को सहर्ष तैयार रहूंगी
बस...
मुझे छोड़ के दूर ना जाना
सामने रहना,पास रहना..........
और फिर चाहें कोई भी सज़ा दे देना .

Thursday, November 3, 2011

कौन किसका करे त्याग



कहाँ चले गए हो?
क्यूँ चले गए हो?
मत जाया करो...
कुछ अच्छा नहीं लगता .
किसी से क्या...
तुमसे भी, कुछ कह नहीं पाती
अंदर ही अंदर सब सहती रहती हूँ.
न जाने मैं कितनी मौतें मरती हूँ .

तुमसे कुछ कहो,तो तुम अनसुना कर जाते हो .
बात बात पे...मोह त्याग का उपदेश झाड चले जाते हो
मैं पूछती हूँ ..
कि
मोह का,प्रेम का,लगाव का , स्नेह का,अनुराग का त्याग ही क्यूँ किया जाए
तुम क्यूँ नहीं कर देते ..
अपने अहम का ,दंभ का ,उदासीनता का ,निर्मोह्पन का ,वीतराग का त्याग ...
मेरे लिए...

Wednesday, November 2, 2011

अहं की दीवार


तुम आश्चर्य करते हो
कि
तुम्हारे इतना कहने-सुनने....
लड़ने-झगड़ने के बाद भी.....
मुझपे कोई फर्क क्यूँ नहीं पड़ता है
प्रेम का रंग फीका क्यूँ नहीं पड़ता है .
क्यूँ मैं कभी कुछ नहीं कहती तुमसे ?
क्यूँ मैं कभी खफा नहीं होती तुमसे ?

किसी दीवार पे कुछ डालो...फेंको
तो चीज़ या आवाज़ लौट के आती है
पर....
मैंने तो तेरे प्यार में
अपने अहं की
सारी दीवारें गिरा दी हैं .

तेरा सब कहा....किया ....
निकल जाता है आर-पार.
प्रेम से परिपूर्ण मेरे इस अस्तित्व में
क्यूंकि ,
बस,प्यार को स्वीकार करने की क्षमता शेष है .

Tuesday, November 1, 2011

सूजी आँखें



आज रात भर ...........
जम कर बरसेंगे बादल
तुम ,
मानो या न मानो
पर.......
मेरी इन बेमौसम बरसातों से
तुम्हारा.....
रिश्ता पुराना है .
कसम है... मुझे ,तुम्हारी
जो मेरी इन लाल ,सूजी हुई आँखों में
सिवा तेरे नाम के कोई और नाम हो तो .

Saturday, October 29, 2011

आदत



आदतें कितना बेबस कर देती हैं...
चार दिन हुए तुमसे बतियाते हुए
अब इधर बात नहीं हो पा रही ...तो मन अनमना सा क्यूँ है ?
मुलाक़ात ...
बात न हो पाने से...
मुझे यकीन है कि ...
तुम भी सोचते होगे मुझे दिन रात
इसीलिए,
शायद ...
मुझे इतनी हिचकियाँ आती हैं,आजकल .

मानो लो न..कि..
अच्छा ,चलो छोडो...
मुझे पता है ,
तुम्हें प्यार के लफ्ज़ से चिढ सी है
इसलिए ,
यह कहना तो ठीक है न
कि
हम दोनों को एक दूसरे से प्यार भले न हो
पर ,
हमें यकीनन एक दूसरे की आदत हो गयी है

Thursday, October 27, 2011

रूटीन


वही सुबह,वही रातें...
वही दोपहर ,वही शामें....
कुछ भी अलग नहीं...
जीवन के ये दिन......
बस यूँ ही....
बीतते जाते हैं.

बोझल बातें हैं....
बेबस सांसें हैं .....
रुकी-रुकी धडकनें....
थमी-थमी मुस्कुराहटें....

"तुम" आ जाओ ,न ........
तुम्हारी बातों का इन्द्रधनुष
मेरी बेरंग जिंदगी में रंग भरता है .
तेरा हर बात पे कहना ,"पता नहीं "..."कुछ नहीं "
नीरस जीवन में जैसे रस भरता है .
आओ, कि..कुछ तो हो...
रूटीन से हट कर .

Saturday, October 22, 2011

कारण -कार्य सम्बन्ध


आज तलक़ मैंने यही सुना और पढ़ा
कि हरेक कार्य का कोई कारण होता है
जैसे बिन आग धुंआ नहीं होता
वैसे कोई काम बिन कारण नहीं होता
पर,
आज हुआ है प्यार
सोचती हूँ ,कि
क्या...........
हर पे लागू किया जा सकता है ये सिद्धांत
कैसे हर चीज़ के पीछे वही एक बात .??/

यहाँ "नहीं"....लागू होती ,यही उत्तर मन में आता है
दार्शनिक,वैज्ञानिक इन सबने....
दिल में लगी आग को नहीं देखा
देखा होता तो बता पाते धुंआ कहाँ हैं
सब देखा ...सब जाना ...आगे पीछे ,ऊपर नीचे,अंदर बाहर
बस इन्होने प्यार ही नहीं समझा...जाना .

अच्छा लगने के पीछे कारण ढूंढना
प्यार होने के एहसास को महसूस करते
यह सोचना कि क्यूँ हुआ ,कैसे हुआ
है प्यार को ही नीचे गिराना
एक उत्कृष्ट भावना का पोस्टमार्टम करना

मुझे जबसे इश्क हुआ
मैंने जाना कि कारण-कार्य संबध..
यहाँ ...लागू नहीं होता
बाकी भौतिक जगत आता होगा इसकी सीमा में
पर अनुभूतियों को नहीं बाँधा जा सकता इसकी परिधि में
इन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने में
मेरा सारा पढ़ा हुआ चुक जाता है
समस्त जीवन का दर्शन और विज्ञान ,
अंततः........
प्रेम के समक्ष धरा रह जाता है

Friday, October 21, 2011

स्वीकृति की संजीवनी


अजीब होता है प्यार .....
नहीं होता तो ....नहीं होता
और जब होता है तो ...
देश ,काल ,उम्र ,समय ,सीमा
किसी को नहीं जानता,नहीं मानता .

पागल सा कर देता है
खुद पे खुद का बस नहीं चलता है
बहुत परेशान करता है
कई रोग लगा देता है
पर,
इसके बाद भी कितना
खूबसूरत होता है

प्यार करके जाना मैंने
कि
मोहब्बत में मर जाना किसे कहते हैं .
जान पे बनी थी मेरी ....
कि ,कल रात ख्वाब सा कोई ...
सपने में आकर ,मेरे सिरहाने
स्वीकृति की संजीवनी रख गया
बीती रात से जी उठी हूँ ...मैं .

Thursday, October 20, 2011

खुद को रोक लूँ

किसी ने कहा ..
कि,
एक कोशिश करके देखूं .
उसे इतना न चाहूँ ...
कि ,
जुड़ाव के कारण
मुझे कोई तकलीफ हो.
जितना गहरा उतरूंगी
बाहर आना उतना मुश्किल हो जाएगा .

शुरुआत है
अभी ही रोक लूँ ..खुद को
क्या करूँ...?
मान लूँ ..?
पर,
ऐसा... होगा कैसे
वो भी...मुझसे
सोचती हूँ, कि प्रेम है...रहेगा
कैसे रोकूँ खुद को..??

चलो,ये कर लेती हूँ..
कि प्यार करती हूँ ...करती रहूंगी,सदा
बस,आज के बाद ..
जतलाना बंद कर दूंगी,तुम्हें .

मैं भी देखूं जो प्यार करते हैं पर जताते नहीं
किसी को चाह के भी कभी जो कह पाते नहीं
दूसरे लफ्जों में कहूँ तो जो तुमसे होते हैं
प्यार होता है फिर भी स्वीकार पाते नहीं
वो कैसे जीते हैं
उन्हें कैसा लगता है
दुआ करना मेरी इस कोशिश के सफल होने की
शायद..इस बदौलत
मैं जान पाऊं वो वजह, तुम्हारी ..
जुड के भी मुझसे दूरी बनाए रखने की

Tuesday, October 18, 2011

प्रेम का तावीज़


शर्त लगाई है....खुद से
जिद है...मेरी
बचपना ...भी कह सकते हो
यकीन है तुम मानोगे ...
...एक न एक दिन स्वीकारोगे..
कि प्यार करते थे,हो और करते रहोगे मुझसे.

अनजान बने रहते हो
अनदेखा भी कर देते हो
अबोला भी हो जाता है
अनसुना कुछ रह जाता है ..
अपने को कब तक यूँ परेशान करोगे,तुम ?

कह दो....
बोलो न....
तुम्हारी बेचैनी ,बेकरारी,घबराहटें,डर,झिझक
को मिटा देना सब ...है मेरे बस में
आओ न...आगे बढ़ो ..एक कदम
स्वीकारो कि मेरा प्रेम तुम्हारे लिए
और तुम्हारा प्रेम मेरे लिए
एक तावीज़ है ...............
इस प्रेम के तावीज़ ...के साथ
हम सारी परेशानियों से लड़ लेंगे
स्वीकार कर लो न!!!

Wednesday, October 12, 2011

कौन हूँ मैं??????




कौन हूँ मैं?
कितनी बार यह सवाल खुद से करती हूँ ...
फिर तुम्हारी बातों में से ही ..
एक उत्तर खोज लेती हूँ
क्यूंकि ,
अधिकतर ,मैं वही सोचती हूँ
जो सब चाहते हैं कि मैं सोचूं .
मेरा मन...??
वो क्या है ...
सबके मन की करते -करते
भूल चुकी हूँ कि मेरे पास भी
अपना एक मन है .
मेरा दिमाग ???
औरतों के पास भी दिमाग होता है क्या???
कभी इस्तेमाल करती और कोई सराहता
तो ही उसे जानती ,पहचानती न !
मेरी भावनाएं????
उनकी मुझे क्या ज़रूरत
मेरा तो धर्म है ...
सबकी खुशी में खुश होना और दुःख में दुखी .
मेरी इच्छाएं?????
मैं मजाक कर रही हूँ क्या?????
मैं और तुम अलग हैं क्या
जो तुम चाहो
बस वही होनी चाहिए मेरी इच्छा .


न मन अपना,न भावनाएं अपनी
न दिमाग अपना ,न इच्छाएं अपनी
न सोच अपनी,न खुशी- गम अपने
अच्छा ,तुम ही कहो न?!
मैं सजीव हूँ या निर्जीव ....??????

(प्रकाशित)

Friday, September 30, 2011

उदासीन


तुमसे प्यार करना कितना सरल था ..
तुमसे नाराज़ हो जाना कितना आसान
रूठने में तुमसे पल भर लगाऊं
क्षण भर में फिर मैं मान जाऊं
तुम्हारे दुःख में दुखी होना
तुम सुखी हो तो मेरा सुखी होना
....आसानी से हो जाता था ये सब

तुम्हारी दुनिया अलग हो गयी है
मेरी दुनिया से
पर,पता नहीं कौन सी डोर जोड़े हुए है
मुझे,आज भी तुमसे ??.
कोशिश में हूँ..........
कि
तुम किसी और को चाहो
और मुझे खराब न लगे ..
तुम दूरी मुझसे बढ़ाओ
मुझे रत्ती भर न खले ..
तुमसे उदासीन हो पाऊँ ...

Wednesday, September 28, 2011

मन करता है



बहुत बार मन करता है
कि
सबके बीच रहते हुए भी
मैं,निपट अकेले हो जाऊं .
वक्त से अपने लिए
कुछ क्षण चुरा लाऊँ .
उन पलों में न कोई और बोले
न हाथ धरे,न छुए
पूछे नहीं चुप्पी का कारण कोई
न सवाल जवाब हो कोई .
बस ....
अकेले लेटे हुए मैं
तुम्हारी यादों में
डूबती तरती जाऊं
सब कुछ भूल के
पार उतरती जाऊं

Saturday, September 24, 2011

प्रेम की मोहर




तुम आज बहुत याद आ रहे हो...
तुम्हारे प्रेम की मोहर
रंग बदल रही है
शुरू में जो लाल थी
धीरे धीरे...काली..बैगनी..नीली...हरी होती हुई
पीली पड़ रही है ..
अब ,चले आओ ...
मेरे बदन पे ,तुम्हारे प्यार के चिह्न नहीं होते
तो मैं खुद को पहचान नहीं पाती हूँ
लगता है किसी और के जिस्म में फंसी हुई है आत्मा मेरी
आओ न....
प्रेम के इस ब्रह्माण्ड में ...
मेरी आत्मा को तृप्त करके मुक्त करने ..

Tuesday, September 20, 2011

टूटी चीज़


कोई चीज़ टूट जाती है
तो हम उसे फेंक देते हैं ..
उसका इस्तेमाल छोड़ देते हैं .
वैसा ही कुछ हुआ मेरा साथ
जो तुम पर था मेरा विश्वास
तोड़ा गया वो तुम्हारे ही हाथ.
पर,
टूटने के बाद भी
मैं न तो छोड़ पायी तुम्हें
ना ही फेंक पायी विश्वास को
दूर कहीं,बेकार जान के .

मैंने सच्चे दिल से चाहा
कि...
यकीन कायम हो,फिर से .
उसे मरता न देखूं बुझे हुए मन से .

जुड जाए...
जैसे,
टाँके लगा कर भर दिए जाते हैं घाव
कुछ वक्त बाद ....
निशाँ भले ही रह जाए देह पर
पर टाँके जज़्ब हो जाते हैं .
वैसे ही ...
स्नेह के टांकों से जोड़ते हैं यकीन को,
क्यूंकि,मेरी चाहत बस इतनी सी है
कि हमारा रिश्ता ऐसा हो
जिसमें जुड़ने की सदा गुंजाइश हो .

Friday, September 16, 2011

तुमसे मिल भी नहीं पाती ..


मन करता है ....
तुमसे मिलूँ ,ढेरों बातें करूँ
पर,फिर.........
ज़माने का डर
रोक लेता है मुझे .

इस भय को जो किसी तरह
मैं पार कर लेती हूँ ..
तो,मेरे कदम रोक लेती है
मेरी शर्म,मेरी ही हया
उसपे संस्कारों की बाधा

इतने तो बंधन हैं आज भी ..
फिर क्यूँ सब कहते हैं
कि वक्त बदल गया है.
स्वतंत्र है नारी ,
हर काम कि उसे है आजादी .
जबकि मैं तो बिना भय के
तुमसे मिल भी नहीं पाती
हरदम यही खटका
कि किसी ने देख लिया तो क्या होगा
बिना किसी अपराधबोध के
तुमसे प्यार भी नहीं कर पाती हूँ .

Friday, September 9, 2011

सफाई पसंद नहीं हूँ



बिस्तर ...
उसपे,सिलवटों से भरी चादर .
चादर सही करती हूँ....
तुम्हें याद करती हूँ.
सख्त नापसंद हैं तुम्हें ,
ये सिलवटें .
फिर यह चादर पे हों
या मेरे चेहरे पर
बिस्तर के सिरहाने के पीछे
दिखे...
ढेरों जले
जल्दी से साफ़ किये
तुम्हें नहीं पसंद
ये जाले दीवारों पे हों
या यादों के जाले मन पर .

मुझे ये सिलवटें भी पसंद हैं
और वो भी ...
जो तुम्हारें माथे पे पड़ती हैं.
मुझे ये जाले भी पसंद हैं
और तुम्हारी यादों के जाले भी
जिनसे घिरी हुईं हूँ मैं .

मैं सफाई पसंद नहीं हूँ न ,तुम्हारी तरह.
कि पिछला सब धो पोंछ कर हटा पाऊं
घर से भी और मन से भी .

Tuesday, September 6, 2011

मैं यह नहीं जानती.....


मैं यह नहीं जानती.....
तुम्हें,कैसा लगता है,मुझसे मिलकर
पर,मैं जब भी तुमसे मिलती हूँ
पास बैठ के बतियाती हूँ
ये वक़्त.....
बादल बन के जैसे उड़ने लगता है
....पानी की तरह बहता जाता है
पारे की बूंदों की तरह फिसलता जाता है .
लाख कोशिशों के बाद भी पकड़ में नहीं आता है .
और आते ही ...न जाने कब
तुम्हारे जाने का वक़्त हो आता है .

Saturday, September 3, 2011

नींद


क्या याद है ...वो अपना बचपन
जब माँ सोती थी ,दोपहर में
तो,जबरन लिटा लेती थी पास में .
वो तो सो जाती थी
पर,जागते रहते थे भाई...मैं और तुम .
उठते थे चुपचाप,बिना कोई आवाज़
फिर भागना,दौड़ना,झूलना,खेलना
इन सब के आगे भला ...
कैसी नींद ,कौन सा सोना?

बड़े हुए..यौवन की मस्ती छायी,
प्यार ने ली अंगडाई ,
प्यार ने खुद ब खुद आंखों से नींद भगायी ,
दिल चुराया किसी ने साथ नींद भी चुराई .

प्यार का जब उतरा बुखार......
जीवन की दौड़ धूप थी
उस में भागते रहने से
थकान तब लगने लगी .
सोने की चाह जागने लगी
काम करके पैसा कमाने में यूँ डूबे
की याद नहीं............
कब नींद पूरी कर के पलंग से हों उतरे .

फिर आया बुढापा ..
अब समय नहीं कटता है
पैसा भी है ,कोई नींद चुराने वाला भी नहीं
खेलने कूदने का भी ज़माना बचा नहीं
पर..................................
अब नींद आती नहीं
पहले मैं दूर उससे भागी
अब वो पास आती नहीं

अब वो शायद एक बार ही आयेगी
हमेशा के लिए सुला जाने
तब तक .....उसका इंतज़ार ...

Thursday, September 1, 2011

तुमसे मेरा क्या नाता है...


तुमसे मेरा क्या नाता है या तुम मेरे क्या लगते हो
जब,किसी दिन कोई मुझसे ये प्रश्न कर लेता है
तब.............
उसके बाद के मेरे कई दिन
इसी सोच में बीत जाते हैं की आखिर तुम कौन हो मेरे?

तुम कौन हो?
इसको तो मैं स्वयं भी परिभाषित नहीं कर पाती हूँ
तुम्हारे लिए ,
अपने इन भावों को खुद व्याख्यायित नहीं कर पाती हूँ.

मुझे बचाते हो जब खतरों से ..
उस पल संरक्षक से लगते हो,तुम
बताते हो जब आगे बढ़ने का सही मार्ग मुझे ..
तब एक सहृदय शिक्षक से लगते हो ,तुम .
जी नहीं पाती तुम पास नहीं होते हो,जब...
तब अपने जीवन से लगते हो ,तुम .
तुम्हें रूठा जान जब दिल डूबता है मेरा ..
उस क्षण दिल की धड़कन से लगते हो ,तुम .
तुम्हारी सौम्य छवि को देखती हूँ जब ...
तो,एक संपूर्ण दर्शन से लगते हो,तुम .
साथ मेरे बांटते हो मेरी खुशियाँ और ग़म
उस समय सच्चे सखा से लगते हो,तुम .
तारीफ़ करते हो जब भी कभी मेरी ..
उस वक़्त काबिल कद्रदां से लगते हो,तुम.
मुझे ,तुम कभी संरक्षक,कभी सहचर कभी सजन से लगते हो
कभी रक्षक,कभी हमसफ़र,अपने जीवन से लगते हो,तुम ..

हरेक परिस्थिति में कुछ नए से लगते हो
हर बार एक नयी तरह से परिचय देते हो
और मैं दुविधा में फंस जाती हूँ
कि
इन सब में से तुम्हें क्या संबोधन दूं
तुम्हारा मेरा रिश्ता क्या है ??
तेरे मेरे बीच कौन सा नाता है
इसके लिए बस यही उत्तर दिमाग में आता है
कि तुम मेरे लिए,मेरे इस जीवन के लिए .........
...सब कुछ हो.
मेरे केंद्र बिंदु,मेरी परिधि हो तुम .
तुमसे शुरू हो कर ज़िंदगी जहां खत्म
होती है वो मेरी एक आरज़ू हो तुम

Saturday, August 27, 2011

किसी को मरते नहीं देखा...


जब... मैंने,आज तुमसे कहा
कि ,मैंने आज तलक
किसी को मरते नहीं देखा .
तुम खूब हँसे थे ,मुझ पर.
कहने लगे..यह संभव ही नहीं .
तुम्हारे.....
इस असंभव और हँसी के मर्म को ढूंढती रही .
उस हँसी की गूँज सुनती रही...सोचती रही
तो यह लगने लगा
कि सच कहा ,तुमने
क्यूंकि
भले मैंने किसी इंसान को दम तोड़ते ना देखा हो
पर............
खुद को खुद के अंदर कई बार मरा पाया है
अपने सपनों का तो खुद गला घोंट डाला है
अपने प्यार को दिल में ही दफनाया है
उम्मीदों को बेमौत मैंने ही मार डाला है
मैंने कैसे कह दिया
कि मैंने मौत नहीं देखी ..
आप सभी ने देखी होगी ...
जब अपने ख़्वाबों ...अपने मूल्यों
अपने आदर्शों,अपनी चाहतों ...
की अर्थी सजाई होगी .

Wednesday, August 24, 2011

तुम्हारी आँखें कुछ कहती हैं.....


तुम्हारी आँखें कुछ कहती हैं,मुझसे
पर,
कुछ और बयां करते हो तुम जुबां से .
बताओ,मैं किसे सच मानूँ ???
तुम्हारी नज़रों को पढ़ना अच्छा लगता है
क्यूंकि वो बयान ज्यादा सच्चा लगता है .
जुबां से तुम जब भी बोलते हो
कुछ कहने से पहले ..
ज़माने के डर से उसे तोलते हो.
जुबां में झूठ की परछाईं नज़र आती है .
जबकि ,आँखों की बात सीधे
दिल में उतर जाती है मेरे .
इसलिए
मेरे से जब कुछ कहना हो तुम्हें
तो,जुबां को आराम दे दो मेरे लिए
और बात करो मुझसे अपने नयन से
दिल की बात कहने पे भी न डरो किसी से .
नज़रों को नज़रों से बातें करने दो
खामोशी की आवाज़ को सुनने दो .
ये माना कि प्यार के रिश्ते बहुत गहरे हैं
पर जुबां पर आज भी ज़माने के पहरे हैं
इसलिए
चुप रह कर भी आँखों को आवाज़ दे दो
अपने ख्यालों को एक नयी परवाज़ दे दो .

Saturday, August 20, 2011

तुम और मैं ...अच्छे ,सच्चे दोस्त

तुम और मैं
एक अच्छे ,सच्चे दोस्त .
पर,अब तुम और तुम्हारे कदम
अचानक ...
दोस्ती की सीमा लांघने लगे हैं
प्रेम की राह पर जाने लगे हैं .
तुम जो यूँ प्रेम पथ पर
आगे बढ़ने को आतुर हो,अकेले
सोच कर के देखो तो ज़रा
अच्छी दोस्त होने के नाते
मैं सब समझते बूझते
कि
मेरी "न" तुम्हें दुःख पहुंचायेगी
अपनी जुबां से इनकार कर पाउंगी ??

अच्छा,चलो ,मान लो जो हिम्मत कर
मैं तुम्हारे प्रेम निवेदन को ठुकरा भी दूं
तो,क्या मैं इसके अपराधबोध से
स्वयं ग्रसित नहीं हो जाऊँगी.
इसलिए,
मेरा यही अनुग्रह है तुमसे
कि अपनी सीमा में रहो
मेरी सीमाएं भी न भंग करो
क्यूंकि...
मेरी न सुनने के बाद
तुम जब व्यथित होगे
तो तुम यह तय जानो
मुझे भी असहज कर दोगे ,
इसलिए
अभी,कृपया ऐसे आमंत्रण मुझे न भेजो
जिसके उत्तर में चुप्पी साध लेने से मुझे भी कष्ट हो
और मेरी इस चुप्पी से तुम्हारी आत्मा भी त्रस्त हो .


अभी,अपनी परिधि मत पार करो
कटाक्षों से मुझपे मत वार करो .
तुम्हारे पूछे सारे प्रश्न
अनुत्तरित ही रह जायेंगे
क्यूंकि,प्रेम डगर पे मुड के
अलग खड़े हो गए हो जाके .
मैं मित्रता की पक्षधर ...तुम प्रेम पुजारी हो गए हो .



मुझे प्लीज़ कुछ समय दो
कि मैं निकल पाऊँ उस दोस्ती की सीमा से
छोड़ आये हो तत्परता से तुम जिसे ...कहीं पीछे
और फिर...............
हम दोनों.....एक साथ
तोड़ कर मित्रता का पाश
प्रवेश करें ,प्रेम की परिधि में
एक दिन...साथ-साथ;कुछ समय बाद .

Thursday, August 18, 2011

प्रेम किया है गुनाह नहीं


कई दिन सोचने के बाद
आज मेरा ..तुमसे मिलने आना
तुम्हारे दरवाज़े तक जाकर
बिन मिले ही मेरा लौट आना .
वापस आकर ,सोचती हूँ
कि किस बात से डर गयी
समाज से या उसके ठेकेदारों से ..
तुमसे या फिर अपने आप से .

सच पूछो तो ...लोगों का डर नहीं था
असल में ,तुम्हारे बर्ताव का डर था ..
मैं न डरूं किसी से ,पर तुम तो डरते हो
अपनी छवि का भी बहुत ख्याल करते हो .

तुम्हारे दरवाजा खोलने से लेकर
मुझे यूँ आया देखकर खुश होने तक .
तुरंत ..फिर इधर-उधर देखना
कि आस पास कोई देख तो नहीं रहा
घर के अंदर ,परिवार के बीच ले जाने की झिझक
साथ ही साथ ...मेरा साथ पाने की ललक .
सबके आगे बस औपचारिकता निभाना
अपनी खुशी को जाहिर ना होने देना ......
....ये सब
मैंने दरवाजा खटखटाने से पहले ही देख लिया था.

तुम्हीं कह दो...
डर से भरे उस दमघोंटू माहौल में...
या फिर औपचारिकतावश बोले गए तुम्हारे कुछ शब्द सुनने
मैं क्यूँ आती???
मैं आई..तुमसे मिलन की आस लिए
लौटना पड़ता तुम्हारी झलक और दो चार नीरस बातें साथ लिए
साथ ही दिख जाती कुछ टेडी नज़रें
दबी मुस्कानें ..कुछ आक्षेप ..कुछ कटाक्ष .
इसलिए-
अब तय किया है
कि आना ही होगा अगर मुझे
तो अब तब आऊँगी ...
जब तुम मुझसे मिलने और बोलने में ...डरोगे नहीं .
जब,
अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने में हम घबराएंगे नहीं
डरेंगे नहीं और ना ही शर्मायेंगे कि हमने प्रेम किया है
क्यूंकि
प्रेम ही तो किया है
गुनाह थोड़े ही किया है .

Tuesday, August 16, 2011

मेरा अतीत

मैं बहुत चाहती हूँ मनमीत,
कि मेरा यह अतीत...
मेरे वर्तमान में आ-आ कर
यूँ न रुलाये मुझे बार-बार .
अतीत बन कर ही रहे सदा
काल की गति के साथ ही बहे...
समय सीमा का न करे उल्लंघन
न याद दिलाए वो"स्नेहिल बंधन"

समय सदा सबके लिए आगे ही बढ़ता है
पर,मेरे जीवन में क्यूँ ये लौट-लौट आता है???
कोई तो बताए,क्या करूँ मैं
इस पागल दिल का अपने
जो सुनता ही नहीं मेरी फ़रियाद
हमेशा करता है तुम्हें ही याद.


जब भी मैं तय करती हूँ,ये...
....कि तेरे दिल का मेरे दिल से
वो नाता कल से तोड़ लूंगी
उसे न फिर कभी जोडूगी .
तब,यह आने वाला कल
आगे ही बढ़ता जाता है,प्रतिपल
और... मैं ,उसका पीछा कर
बैठ जाती हूँ थक-हार कर .

मैं इंतज़ार ही करती रहती हूँ...
उस कल के लिए ही जीती हूँ ...
जब ,सही मायनों में
मैं तुम्हें भूल पाऊँगी
तुमसे अलग हो पाऊँगी .

वो कल आता ही नहीं ...
शायद,आगे भी न आये कभी
क्यूंकि
दिल के किसी कोने से
आज भी यही आवाज़ आती है
कि,
मैंने तुम्हें अपनी धडकन माना है
और
जब तक हैं सांसें मुझमें
तेरा प्यार रहेगा ज़िंदा मुझमें .

Friday, August 12, 2011

रोज़ मिलना...औपचारिकता ??


रोज़ ,तुम्हारा ...
मुझसे मिलना, बातें करना
हंसना-बोलना,साथ-साथ चलना
तुम्हें,अटपटा सा लगता है ,ये सब करना.
लगता है कि प्यार में ये कैसा दिखावा?
इन औपचारिकताओं की क्या आवश्यकता है ??
इन प्रदर्शनों में खुद को क्यूँ कर सीमित करना है ???

हमारी मित्रता तो यथार्थ के धरातल पर टिकी है.
वास्तविकता के आधार पर उसकी नींव टिकी है
शायद,इसीलिए ...
तुमने यह कहा मुझसे
कि
प्रेम तो मूक अभिव्यक्ति है...
बिन शब्दों के भी सब समझा जा सकता है
बिन मिले भी एक दूसरे को जाना जा सकता है
यही तो प्रेम की पहली सीढ़ी है...
"रोज मिलने से कहीं अच्छा है ,
कि जब ज़रूरत हो तब मैं तुम्हारे पास हूं.
ऐसे बात करने से क्या लाभ
कि जब तुम तन्हाई से घबराओ तब मैं न पास हूँ.
रोज साथ चलने से अच्छा है,ज्यादा
कि जब तुम गिरो तब संभालने को मेरा हाथ हो.

तुम्हारे कहे गए ये सारे वाक्य ,
रात दिन मुझे याद आते हैं.
पर,तुम्हारी कही इन बातों का क्या कोई फायदा है?
क्यूंकि क्या तुम यह बात नहीं समझते हो,
कि रोज बोलना शायद ज़रूरी न हो
पर बिन बोल क्या तुम समझ जाओगे
कब मुझे है क्या परेशानी,कब मुझे है ज़रूरत तुम्हारी
मात्र प्रेम के दृढ आधार के बाल पर जान पाओगे...सब?

जब मिल सकते हों
तब भी रोज मिलना,साथ चलना आवश्यक नहीं
पर एक बात बता दो फिर,कि
क्या तुम्हारे पास है वो शक्ति,
कि बिन मेरे साथ चले ही
ठोकर कहाँ लगी,कहाँ मैं गिरी
तुम जान जाओगे....??

चलो,मैंने...इस सत्य को स्वीकार लिया
कि अनूभूतियों का,भावनाओं का अपना मोल है
पर ,यह जो व्यवहारिक दुनिया है ...इसका क्या ?
मेरे...तुम्हारे जैसे इंसानों में
अंतर्यामी होने का गुण है क्या?
जो बिन कहे,मिले हम सब जान -समझ लें.
बिन मिले,बोले,साथ चले
ज़रूरत के समय चाह कर भी ...
साथ नहीं दे पायेंगे...
पता कैसे चलेगा कि ..
कौन कब खुश है,रुष्ट है...या कोई कष्ट है.

तुम भी तो कहते हो भावनाओं से ही इंसान ...इंसान बनता है
फिर उसे दिखाने में शर्म कैसी और क्यूँ ?
मुझे इंसान रहने दो...मशीन मत बनने दो
क्षुद्र इंसान हूँ मैं,यह मत भूलो
प्रेम यूँ तो इन सबसे उपर है
पर इसके पोषण में यही छोटी बातें,मुलाकातें
अपना योगदान देती हैं .
ये एक-एक इकाई ही जब जुड़ती है
प्रेम नवीन होता जाता है
ठहराव से बचता है
बिना अवरोध बहता जाता है

Monday, August 8, 2011

अब हूँ.....तुम्हारे साथ


तुम्हारे हाथ में
मेरा हाथ सौंपा गया
और मैं,तुम्हारा हाथ थाम
तुम्हारे जीवन में आ गयी.
अनजाने में ही...
अपने पीछे के सारे दरवाज़े
लौट जाने के सारे रास्ते
खुद ही बंद कर आई .
अब,हूँ...तुम्हारे साथ
तुम्हारे किये झूठे वादों,
तुम्हारी ली झूठी कसमों
अपने टुकड़े हुए विश्वास
रुंधी हुई प्यार की आवाज़
की....
अर्थी को ढोते...हुए

Friday, August 5, 2011

जल ही जीवन है

पानी ही जीवन है
सब जानते हैं
सब मानते हैं.
पर,जब वही पानी
बहता है मद्धम-मद्धम
तुम्हारी आँखें करके नम
तब,
पता नहीं क्यूँ ...??कैसे??
भीग जाता है मेरा भी मन .
अजीब सी उलझन होती है
गला रुंध जाता है.
उस वक्त ....
यह पानी ,
जीवन का पर्याय नहीं लगता
पानी का यह रूप ...
बिलकुल भी
अच्छा नहीं लगता .

Wednesday, August 3, 2011

बौराये से ..

तुम आये जीवन में
और..................
बदल गया है
मेरे दिल का मौसम
सावन ही सावन है ...आजकल ,यहाँ

अलसाई सुबहें..
मदहोश रातें हैं .
नशीले बातें....
प्यार की बरसातें हैं .
थिरकती हवाएं ....
गुनगुनाती फिजाएं हैं.
टूटती बंदिशें...
गाती हुई धडकनें हैं.
बहकती सांसें है
सुरमयी से लम्हें हैं .
यह सब मेरे अपने हैं
और
इनके साथ हैं
बौराये से
मैं और तुम ..................

सच,कहना...
लगता है न
कि जब से हम मिले हैं
सावन है...
नेह की घटायें हैं
जिनसे इश्क बरसता है
नशे के साथ मिला हुआ

भीगे से...बहके से...दहके से "हम"

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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