ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, May 19, 2012
भूत
बीती बातें...गुजरी बातें
भूत ..कहते हैं ,इनको.
सही ही कहते हैं न ..
भूत सरीखी ही होती हैं,ये सारी .
एक बार पीछे पड़ जाएँ
तो पीछा नहीं छोडती कभीं .
बीती गुजरी बातों के भूत को
रिफाइंड भाषा में याद कह देते हैं .
यह भूत न दिन देखें न रात
ना सांझ न दोपहर
किसी मौसम से कोई फर्क नहीं पड़ता .
जब मन चाहा पकड़ लिया.... पीछे से
दिल में दर्द हो,आँख नम हो
हर ओर उदासी का आलम हो
तब समझ आता है कि चढ गया
भूत फिर से वर्तमान पे.
ध्यान कहीं न लगे
मन रोने का करे
अजीब सी उलझन हो
बस में न तन मन हो
सब यही देते हैं सलाह कि
झडवा लो किसी से
अब कौन समझाए सबको
कि उस "किसी "को
जो मेरा यह भूत उतारे
यह लोग कहाँ ढूंढ पायेंगे ?
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दिल में दर्द हो,आँख नम हो
ReplyDeleteहर ओर उदासी का आलम हो
तब समझ आता है कि चढ गया
भूत फिर से वर्तमान पे.
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
शुक्रिया!!
Deleteबीती बातें...गुजरी बातें
ReplyDeleteभूत ..कहते हैं ,इनको.
सही ही कहते हैं न ..
भूत सरीखी ही होती हैं,ये सारी .
एक बार पीछे पड़ जाएँ
तो पीछा नहीं छोडती कभीं
हाँ कभी भी पीछा नहीं छोड़ते ये भूत... सुन्दर प्रस्तुति
आभार!!
Deleteदिल में दर्द हो,आँख नम हो
ReplyDeleteहर ओर उदासी का आलम हो
तब समझ आता है कि चढ गया
भूत फिर से वर्तमान पे.
सच ये भूत पीछा नहीं छोडता ...
जी हाँ...नहीं छोडता .
Deleteअतीत में विचरती सुंदर प्रस्तुति ...!!
ReplyDeleteअनुपमा....थैंक्स!!
Deleteभूत तादात्म्य का भूत है...
ReplyDeleteकुछ भूत अच्छे होते हैं
कुछ बुरे
बुरा भूत बिन बुलाया मेहमान है
तो अच्छा भूत एक विशिष्ट मेहमान
.
सच हमारे मन को
लत है भूत की
उसका मत भूत की
परछाइयों से ही तय है
यह भूत अद्भुत रहा...
मनोज जी...आपके द्वारा की गयी यह टिप्पणी भी अद्भुत रही
Deleteबुरा भूत बिन बुलाया मेहमान है
तो अच्छा भूत एक विशिष्ट मेहमान....वाह!!
अब कौन समझाए सबको
ReplyDeleteकि उस "किसी "को
जो मेरा यह भूत उतारे
यह लोग कहाँ ढूंढ पायेंगे ?
......बहुत ही भावपूर्ण अन्तःस्थल को स्पर्श करती रचना... !!!
शुक्रिया!!
Deleteभूत तो डराता ही जाता है ...
ReplyDeleteजी...
Deleteभूत तो डराता ही जाता है ...और असली भूत को जो बुरी तरह हावी हो , कौन उतारे उस भूत के सिवा
ReplyDeleteसही कहा ,आपने...बिलकुल.
Deleteभूत का मतलब डर एवं जो डर गाया वह मर गया । हम वर्तमान में न जीकर वास्तविक रूप में अतीत में जीते हैं । प्रस्तुति अच्छी लगी । बहुत दिन हो गए । आपने तो मेरे पोस्ट पर आना ही छोड़ दिया । मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहें । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteजी.......आपकी पोस्ट पर आउंगी.
Deleteसच है ये भूत नहीं उतरता ... उम्र भर साथ चिपका रहता है यादों के रूप में ...
ReplyDeleteभाव मय ...
यादों के रूप में ....उम्र भर साथ.
Deleteअब कौन समझाए सबको
ReplyDeleteकि उस "किसी "को
जो मेरा यह भूत उतारे
यह लोग कहाँ ढूंढ पायेंगे ?
....सच है यह भूत उम्र भर कहाँ पीछा छोडता है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार
सच्ची...भूत कभी पीछा नहीं छोडता .
Deleteखुद को बांधा है शब्दों के दायरे में - - संजय भास्कर
ReplyDeleteनई पोस्ट पर आपका स्वागत है निधि जी
थैंक्स......आउंगी,पोस्ट पर.
Deleteअब कौन समझाए सबको
ReplyDeleteकि उस "किसी "को
जो मेरा यह भूत उतारे
यह लोग कहाँ ढूंढ पायेंगे ?
badi gahri baat... kahan se dhundh ke layen:)
achchhi rachna...
बहुत-बहुत शुक्रिया!!
Deleteहे हे ... भूत! सही कहा आपने..... वैसे इस तरह से आपका सोचने का अंदाज अच्छा लगा। मैं अभी भी सोच रही हूँ कि क्या तुलना किया है आपने! अद्भुत है! अबसे मैं भी भूत कहा करूंगी......
ReplyDeleteतुम भूत कहोगी तो ....मेरा लिखना सफल.
Deleteधन्यवाद!!
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