Saturday, December 31, 2011

नए का स्वागत करो...!!


मैं क्या हूँ...तेरी ज़िंदगी मैं
क्या मायने हैं,मेरे
क्यूँ,मिले हम -तुम
सोच रही हूँ,आज कई दिन से

मैं एक पुराना रिश्ता...
जो नींव बना नए रिश्ते की
मैं...खुश हूँ
कि मैं सेतु बन पायी
जिससे गुजर कर...
तुम पहुँच पाए नयी दुनिया तक
मैं, वो ख्वाब जो पूरा न होकर भी
सितारे छू लेने की, आगे बढ़ने की
हर ख्वाहिश बढ़ा देता है .

पुराने को विदा ...नए का स्वागत ....हैप्पी २०१२

Thursday, December 29, 2011

रोशनी ही रोशनी



तुम....अलग
मैं....अलग.
अलग-अलग होने के बाद भी
कायदे से हम अगर मिल जाएँ...
तो,
विपरीत ध्रुव होने के बाद भी
सही कनेक्शन जुड़ने से
जैसे....
सर्किट पूरा हो जाता है,
बिजली दौडने लगती है.
वैसे ही ..
सब सही हो जता है ...
हमारे बीच.
रोशनी ही रोशनी
मन के अंदर भी ...
और बाहर भी .

Wednesday, December 28, 2011

कुहासे की चादर



कुहासे की इस चादर को...
पर्दा बना लें ,क्या?
जी भर के इन गुलाबी सर्दियों का
मज़ा ले लें,क्या ?

देखो,न
ईश्वर ने भी तुम्हारी सुन ली
तुम्हारी इस हिचकिचाहट
कि कहीं कोई देख न ले ..
..से तुम्हें मुक्ति दे दी

आओ,ना मेरे आगोश में
सच...इस कोहरे को काटने की कैंची
किसी के पास नहीं है ..
जब तक सूरज नहीं आता
भगवान ने ,हमें,
प्यार करने का वक्त दे रखा है

Tuesday, December 27, 2011

जंगल



जंगल....
बिलकुल तुम्हारी आँखों जैसे हैं..
मुझे बुलाते हैं बड़ी शिद्दत से.....
ये अपने करीब.

इनमें जाने का भी मन करता है
डर भी लगता है
कि,
कहीं....
रास्ता ही न भूल जाऊं मैं
ताउम्र ,भटकती ही न रह जाऊं मैं .

Sunday, December 25, 2011

यू एस पी


तुम और मैं
दो विपरीत व्यक्तित्व
तब भी चुम्बक की तरह
एक दूजे की ओर खिंचे चले आये...
क्या सच...विपरीतता ही आकर्षण का कारण बनी
या
मेरी जो कमियां हैं वो तुम पूरी कर देते हो
और तुम्हारा अधूरापन मैं भर देती हूँ ..
एक दूसरे के पूरक हो गए हैं हम.

एक दूजे को ... संपूर्ण कर देना ही ..
हमारे इस रिश्ते की यू एस पी है ..है न?!!

Friday, December 23, 2011

प्रेमांकुर


मेरे मन की
इस बंजर धरा पर ..
प्रेम के अंकुर
फूटे हैं....
पहली बार .
तुम ही कारण हो
इसको बनाने में उर्वरा .
स्नेह रस की वर्षा के बाद
जब-जब चाहत की फसल उगेगी
तुम याद आओगे,बेइंतिहा ....

Thursday, December 22, 2011

गुलाबी सर्दियाँ



सर्दी में...
हमारे बीच यह दूरियां ........

मेरी इन गर्म साँसों का...
इन आहों का...
धुंआ ....
क्या पहुंचता है तुम तक
कोहरे के साथ ,
और छूता है तुम्हारे चेहरे को,
सहला देता है ....

गुलाबी हो जाते हैं ...
गाल,नाक ,चेहरा
ठण्ड के कारण ही ...है न ???

Thursday, December 15, 2011

चाहोगे न ?




मैं वाकिफ हूँ इस बात से
कि,मेरे साथ
बड़ा कठिन है निबाह पाना
साथ चल पाना,प्यार कर पाना .

तुम जानते हो कई बार
मैं बिना किसी कारण
तुम्हें कटघरे में खडा कर देती हूँ
इतना धकेलती हूँ कि..
तुम्हारे पास जीतने का कोई चारा नहीं बचता
तुम हारते नहीं हो
बस,मेरा दिल रखने को
हार मान लेते हो .
सोचते हो कि ..
आखिर कहाँ ,कब,कौन सी गलती तुमसे हुई
जिसके लिए मैंने ऐसा किया ...

सच कहूँ,तो तुम गलत नहीं होते हो
गलत ...मैं होती हूँ.
क्यूंकि,
मैं समझ नहीं पा रही
गले नहीं उतार पा रही ...सीधी -सिंपल सी यह बात
कि तुमसा बेहतरीन इंसान ...
मुझमें ऐसा क्या देखता है?
मुझे भला क्यूँ इतना चाहता है ?
एक अनजाना सा डर मुझे घेर लेता है
ये डर ही सब ऊलजलूल कहलाता ,करवाता है
यह डर...
कि ,तुम कहीं भूल तो नहीं जाओगे मुझे
कमियां जान कर छोड़ तो नहीं दोगे मुझे
मैं कुछ छिपा नहीं रही,अपनी गलती से न भाग रही
कोई बहाना भी नहीं बना रही
बस,इतना कह रही...
कि ,जब मुझे समझ पाना कठिन होता है
मेरी थाह पाना बहुत मुश्किल होता है
उस वक्त...उन क्षणों में
जिनमें ,तुम्हें कुछ कहना चाहती हूँ पर बता नहीं पाती
जो बोलना चाहती हूँ वो जतला नहीं पाती
तब ....ही...
मैं तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ
तुम्हारे बिन जीवन की कल्पना नहीं कर पाती हूँ.

कोई मुझे इतनी शिद्दत से कैसे चाह सकता है ..
यह सवाल रात-दिन परेशान करता है ,आजकल .
सोचती हूँ ,कोहरे की चादर में लिपटी किसी सुबह
इस प्रश्न को किसी गहरी घाटी में फेंक आऊँ
जिससे दोबारा ये मन की झील में हलचल न मचाये
क्यूंकि,पता तो है ,मुझे
जैसी हूँ...सारी खूबियों -खामियों के साथ
मुझे चाहते हो तुम ...हमेशा चाहोगे
चाहोगे न...?

Monday, December 12, 2011

नया हुनर




वक्त.......बड़ा कमबख्त
सरपट दौड़ा जाता है..
आजकल उसके पीछे भाग रही हूँ ..
सारा दिन इसी कोशिश में लगी हूँ ...
कि
वक्त की गिरह से
कुछ लम्हें चुरा लूं .


ऐसे कुछ लम्हे जिनमें
केवल हों ...
"मैं" और "तू".
उन क्षणों में न हो कोई दरमियाँ
जी लें उनमें ....हम सदियाँ .


देखो,समय की जेब क़तर पाती हूँ या नहीं ?
कतरे जो झरेंगे,वो समेट पाती हूँ या नहीं ?
आखिर,कुछ पलों को ...
तेरे साथ को पा लिया
देख न...तेरे प्यार ने
एक नया हुनर सिखा दिया
मुझे खुद नहीं पता चला
कब गिरह्कटी का इल्म आ गया .

Friday, December 9, 2011

परिणत




इतना असहाय क्यूँ कर देता है प्रेम????
इतना परवश कभी नहीं हुई थी,मैं.
अपना कुछ है ही नहीं
मन ,विचार,संवेदना,भावना
सब तुमसे शुरू तुम पे खतम.

जिधर तुम..
उस ओर रही
उस ओर बही .
मैं ..मैं ही नहीं रही
तुझमें ही व्याप्त होकर
तुझमें ही परिणत हो गयी.

Thursday, December 8, 2011

अचानक......



अचानक .......
ज़िंदगी की इस राह पे
चलते-चलते
एक मोड पर
तुम मिल गए ..
जुड गयी तुमसे
बंध गयी तुमसे

अब,
जब भी कोई पूछता है
कि क्या है हमारे बीच
तो ,जवाब देते नहीं बनता


हरेक उस रिश्ते से ऊपर रखती हूँ ,इसे
जिनमें ,मैं जो नहीं हूँ वो दिखाती हूँ
दूसरों के मन मुताबिक ढलती जाती हूँ
क्यूंकि
यही बेनाम सा रिश्ता
जो तेरे मेरे दरमियाँ है
मेरी अस्मिता को सुरक्षित रख
मुझे जीने की वजह देता है .

Saturday, December 3, 2011

इतना याद आना




किस बात पे याद आते हो?
कितना याद आते हो?
क्यूँ याद आते हो??????
बड़ा मुश्किल होता है
ये सब बही खाते ..
रख पाना .
इसलिए ,
जब भी याद आना
मेरी जान...
हर बात पे याद आना
बिना किसी कारण याद आना
बेहिसाब याद आना
मैं खुद को भूल जाऊं
बस,इतना याद आना.

Friday, December 2, 2011

हरसिंगार




मैं,
आजकल............
रातों में ,
सोती नहीं हूँ .
तुम्हारे साथ ,तुम्हारे पास होती हूँ.
तुम्हें,पता है,न !
रात भर मिल कर......
हम ढेरों बातें करते हैं ...

सारी रात .....
सांसें चढती हैं,
धडकनें बढ़ती हैं .
हरसिंगार की कलियों को
जैसे फूलों में बदलते हैं .

सवेरा होते ही
बिस्तर छोड़ देती हूँ
देखती हूँ कि
तुम पास नहीं हो
नारंगी डंठल वाले
वो सफ़ेद फूल
ज़मीं पर बिखरे पड़े हैं
और ...मेरा बदन
खुशबू से महक रहा है .

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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