ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Thursday, May 3, 2012
बी प्रैक्टिकल ....
कभी कभी पता होता है
कि कुछ भी नहीं शेष है उस सम्बन्ध में
फिर भी ...
दिल से यह जानते हुए भी
हम मानना नहीं चाहते .
तुम भी समझाते हो अक्सर
फोन पर बार-बार दोहरा कर
ज़िंदगी ऐसे नहीं चला करती
समझा करो...बी प्रैक्टिकल .
बताओ न..
इतनी प्रैक्टिकैलिटी कैसे लाऊं?
कहाँ से लाऊं....?
पिछला सब भूल जाऊं,
और नए में रम जाऊं .
प्रैक्टिकल होना, मतलब यही है ..
तुम्हारी निगाह में न
कि मैं बिना शिकायत करे जियूं
तुम्हारे पास हूँ जब तुम चाहो
वरना मैं दूर रहूँ .
मुस्कुराऊं क्यूंकि इससे लोग सवाल नहीं करते
उनके दिमागों में मुझे तुम्हे लेकर
शक के कीड़े नहीं पलते.
मैं कोशिश कर रही हूँ
बिलकुल सिंसेयर्ली
प्रैक्टिकल होने की
अपने असली मनोभाव छुपाने की
और यूँ ही जीते जाने की .
कामयाब होउंगी या नहीं पता नहीं .
अच्छा इस कोशिश में मेरी कामयाबी के लिए
चलो,दुआ करते हैं....
जोड़ो न...
अपनी एक हथेली ..मेरी हथेली से .
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अच्छा इस कोशिश में मेरी कामयाबी के लिए
ReplyDeleteचलो,दुआ करते हैं....
जोड़ो न...
अपनी एक हथेली ..मेरी हथेली से .
बहुत बढ़िया प्रस्तुति, सुंदर अहसासों की रचना,.....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
शुक्रिया!!
Deleteअब तक जितनी रचनाओं से गुजरी हूँ , उसमें एक कतरे आंसू के साथ बुनियादी मासूम ज़िद है प्यार की
ReplyDeleteसही कहा आपने रश्मि जी....निधि के हर शब्द में आंसूं के साथ एक जिद है...एक प्यारी मगर बहुत दर्दभरी जिद. उम्मीद की किरणें भी झांकती है मगर नन्ही सी.
Deleteरश्मि जी....जिद तो है...बेशक !!
Deleteशेफाली...कुछ जिदें बस जिदें बन कर ही रह जाती है..जैसे कुछ उम्मीदें सारी ज़िंदगी उम्मीदें ही रह जाती हैं.
Deleteबहुत प्रेक्टिकल कविता लिखी है ..... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार!!
Deleteनिधि.....इस कविता ने मेरी आखों में आंसूं ला दिए!
ReplyDeleteक्यों नहीं वो, वो बन जाता जो हमारा मन चाहता है....क्यों हम किसी के लिए प्रेक्टिकल जो जाये? कोई हमारे लिए जरा नॉन- प्रेक्टिकल नहीं हो सकता?
तुम्हें फिर रुला दिया,मैंने.यही प्रश्न मेरा भी है...क्यूँ हम ही बदलें ,खुद को?
Deleteज़रूरी है क्या हमेशा बंधी-बंधाई लीक पे चलना ?
मैं बिना शिकायत करे जियूं
ReplyDeleteतुम्हारे पास हूँ जब तुम चाहो
वरना मैं दूर रहूँ .
मुस्कुराऊं क्यूंकि इससे लोग सवाल नहीं करते
उनके दिमागों में मुझे तुम्हे लेकर
शक के कीड़े नहीं पलते.
बहुत खूब....लगता है अपना ही कुछ पढ़ रही हूँ......!
सुंदर....कहूँ या .......???
आपने यह कह दिया कि अपना कुछ पढ़ रही हूँ...मेरा लिखना सफल हो गया .
Deleteयह तो सच ..एक खुशखबरी है.बधाई एवं शुभकामनायें!!
ReplyDeleteअच्छा इस कोशिश में मेरी कामयाबी के लिए
ReplyDeleteचलो,दुआ करते हैं....
जोड़ो न...
अपनी एक हथेली ..मेरी हथेली से .
बहुत ही मासूम सी रचना………आखिर कितना प्रैक्टिकल बने कोई?
सच्ची..प्रैक्टिकल होने की भी एक सीमा होती है
Deleteप्रैक्टिकल होना, मतलब यही है ..
ReplyDeleteतुम्हारी निगाह में न
कि मैं बिना शिकायत करे जियूं
तुम्हारे पास हूँ जब तुम चाहो
वरना मैं दूर रहूँ .
वाह...कितना बड़ा सच लिखा है आपने
नीरज
कुछ लोग हैं जिनके लिए प्रैक्टिकैलिटी का यही मतलब होता है
Deleteचलो,दुआ करते हैं....
ReplyDeleteजोड़ो न...
अपनी एक हथेली ..मेरी हथेली से . ............
बहुत खूबसूरत भाव ......बहुत खूब
तहे दिल से शुक्रिया !!
Deleteएक तरफ़ा हो के जीना आसान नहीं होता ... इसे प्रेक्टिकल होना नहीं कहते ...
ReplyDeleteरिश्तों की कशमकश कों बाखूबी लिहा है आपने ...
बात को समझने के लिए...धन्यवाद!!
Deleteप्यार अगर प्रैक्टिकल होगा भी तो भी ऐसा ही रहेगा.......
ReplyDeleteप्यार जिस जगह जाए...उसकी परिभाषा बदल देता है.
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