Wednesday, August 26, 2015

तोहफे

तुम्हारी दी हुई चीज़ जब
दरकती टूटती ..
अटकती बिगड़ती ..
फिसलती छिटकती है
तो ,पता नहीं क्यों
उसे हमारे रिश्ते से जोड़ के
देखने लग जाती हूँ
इतना कुछ खो चुकी हूँ पहले
कि अब कुछ भी खोने से डरती हूँ

तुमने जो कुछ मुझे दिया है
फिर वो चाहें
मोहब्बत का एहसास हो
या ये भरोसा कि तुम पास हो
कई ख़त दुआओं से भरे हुए
या छोटे बड़े अनगिन तोहफे
अब  ,
जब कभी इनमें से
किसी को कुछ होता है
इक डर सताता है मुझे
सब बिखर जाने का

उसके बाद अक्सर मनाती रहती हूँ
मुहब्बत का कभी एक लम्हा न छूटे
तेरे प्यार पे जो है भरोसा वो न टूटे
दुआओं के ख़त में न देर हो कभी
चाहत का रंग फीका न पड़े कभी

3 comments:

  1. प्रेम की इन्तहा है आपकी रचना ... बहुत उम्दा ..

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (27-08-2015) को "धूल से गंदे नहीं होते फूल" (चर्चा अंक-2080) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति

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