आजकल तुमसे कह नहीं पाती
दिल की कोई बात
यही वजह सब अनकहा
कागज़ पे ख़ुद चला आता है
मेरे लिखे लफ़्ज़ों में तुम हो
स्याही में घुली हर बात
बहती है खुद को कहती है
पहले तुमसे सब बोल देती थी
रीत जाती थी
अब अंदर ही अंदर घुटती हूँ
भीतर से भरी रहती हूँ
कलम से कागज़ तक का सफ़र
सिर्फ़ तुमसे अपनी कहने का
इक नया तरीका भर है
अबोला...
अच्छा है कई मायनों में
देखो न इसमें भी कुछ न कुछ
पॉज़िटिव ढूंढ लिया मैंने
हर चीज़ में कुछ अच्छा खोजना
तेरी ये बात भूली नहीं अब तक मैं
अब तक तेरी ये बात भूली नहीं मैं।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूब लिखती हैं आप
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