यायावर हूँ
घुमक्कड़ी...काम मेरा
बेमतलब इधर उधर भटकते रहना
बिन काम के यहाँ वहाँ फिरते रहना
तेरे दिल के सिवा न घर न मकाँ मेरा
तुमसे छूटा तो फिर कहीं बंध न सका
ज़िन्दगी में इक ठौर कभी रुक न सका
भागता रहा हमेशा कहीं थम न सका
कोई चीज़ कोई बंधन मुझे कस न सका
प्यार खोया और मैं उसे ढूंढता रह गया
वो ख़त हूँ जिसका पता लापता हो गया
क्या करता यार
तेरे प्यार में पागल हुआ आवारा हो गया
तेरे दिल से निकला तो मैं बंजारा हो गया
घुमक्कड़ी...काम मेरा
बेमतलब इधर उधर भटकते रहना
बिन काम के यहाँ वहाँ फिरते रहना
तेरे दिल के सिवा न घर न मकाँ मेरा
तुमसे छूटा तो फिर कहीं बंध न सका
ज़िन्दगी में इक ठौर कभी रुक न सका
भागता रहा हमेशा कहीं थम न सका
कोई चीज़ कोई बंधन मुझे कस न सका
प्यार खोया और मैं उसे ढूंढता रह गया
वो ख़त हूँ जिसका पता लापता हो गया
क्या करता यार
तेरे प्यार में पागल हुआ आवारा हो गया
तेरे दिल से निकला तो मैं बंजारा हो गया
यायावर हूँ भटकता रहता हूँ
ReplyDeleteधरा के इस छोर से उस छोर तक।
प्यार खोया और मैं उसे ढूंढता रह गया
ReplyDeleteवो ख़त हूँ जिसका पता लापता हो गया
क्या करता यार
तेरे प्यार में पागल हुआ आवारा हो गया
bahut sundar
तेरे दिल से निकला तो मैं बंजारा हो गया
सुंदर भावपूर्ण कविता.
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