Tuesday, July 24, 2012

क्या.....




बेजान चीज़ों को
जला कर
तोड़ कर
धो कर
फाड़ कर
फेंक कर
तुमने सोचा होगा
कि चलो,पीछा छुडा लोगे ,मुझसे .
सच कहना
कि क्या .........
जला पाओगे?
तोड़ पाओगे ?
मिटा पाओगे?
धो पाओगे?
फाड़ पाओगे ?
फेंक पाओगे?

मेरा अक्स ...
अपने दिल से
अपने ख़्वाबों से
अपनी सुबहों से
अपनी आँखों से
अपनी यादों से
अपनी बातों से
अपनी रातों से
अपने"वजूद" से .

तुम्हें अभी तक दरअसल पता ही नहीं चला है
कि फर्क नहीं है कोई "मैं" और "तुम" में
जब तक तुम हो
मैं रहूंगी तुम में .

14 comments:

  1. तुम्हें अभी तक दरअसल पता ही नहीं चला है
    कि फर्क नहीं है कोई "मैं" और "तुम" में
    जब तक तुम हो
    मैं रहूंगी तुम में .....
    bahut khoob Nidhi.

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  2. बहुत बहुत सुन्दर...
    चीजो को नस्ट करने से कुछ नहीं होता..
    जब भावनाए दिल में समां गयी है...
    :-)

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    1. सच...चीज़ें नष्ट करने से कुछ नहीं होता .

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  3. तुम्हें अभी तक दरअसल पता ही नहीं चला है
    कि फर्क नहीं है कोई "मैं" और "तुम" में
    जब तक तुम हो
    मैं रहूंगी तुम में .

    वाह ………बहुत खूबसूरत भाव संयोजन्।

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    1. तहे दिल से शुक्रिया,पसंद करने के लिए

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  4. जब तक तुम हो
    मैं रहूंगी तुम में .
    बहुत सुंदर ...सशक्त भाव ...!!
    शुभकामनायें ...!!

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  5. जब तक तुम हो
    मैं रहूंगी तुम में .
    .
    प्रेम कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसका अस्तित्व बाहर है...वह तो बसता है हमारी भावनाओं में...जिसका अक्स नज़र आता है:दिल में,ख्वाबों में और हर सुबह में,यादों में,बातों में,रातों में। सचमुच कोई भी प्रेम को अपने वजूद से अलग नहीं कर सकता।
    .
    प्रेम यहां भी मौजूद है
    प्रेम वहां भी मौजूद है
    प्रेम कहां नहीं है
    प्रेम मुझ में भी है
    प्रेम तुझ में भी है
    फिर प्रेम को जीवन से
    निकालने का प्रश्न क्यों?

    क्योंकि-
    जिसे हम प्रेम कहते हैं
    उसमें दूसरे कि मौजूदगी जरुरी है
    कभी अपने वजूद को भी प्रेम करके देखो
    जीवन कितना सुंदर है...

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    1. इस एकाकार का अनुभव कर लेना ही प्रेम की चरम परिणति है.

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  6. तुम्हें अभी तक दरअसल पता ही नहीं चला है
    कि फर्क नहीं है कोई "मैं" और "तुम" में
    जब तक तुम हो
    मैं रहूंगी तुम में . bhaut hi khubsurat abhivaykti...

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