ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Sunday, June 3, 2012
ज़िंदगी हैइच ऎसी.....
ज़िंदगी हैइच ऎसी.....
कब रंग बदल के
सामने आ खडी हो
किसी को पता नहीं होता .
सब सही चल रहा होता है
कि अचानक फोटू बदल जाती है
हाय ये जिंदगी
कहाँ ,किस कोने ,कुब्जे में ले जा के
पटखनी दे अंदाज़ा नहीं होता .
अक्सर,जब हारने लगते हैं
तो कहीं से चली आती है
कि ले थाम हाथ मेरा
अभी से कैसे हार मानने लगे
अभी तो लड़ना बाक़ी है,दोस्त.
हँसते हुए को रुलाने
रोते हुए को हँसाने
आ धमकती है
कभी इस मोड से ...कभी उस मोड पे.
मुझे कल मिली थी ,एक गली में
मुंह चिढाते हुए
कि आ जा...मस्ती करते हैं.कुछ देर.
जाते हुए गले लगा के
कान में कह कर गयी
अपने धमकाने के अंदाज़ में ....
बच्चू ...बच के रहने का
संभल के चलने का,अपुन से...
"
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अक्सर,जब हारने लगते हैं
ReplyDeleteतो कहीं से चली आती है
कि ले थाम हाथ मेरा
अभी से कैसे हार मानने लगे
अभी तो लड़ना बाक़ी है,दोस्त... वाकई ज़िन्दगी हैईच ऐसी
हम्मम्मम .
Deleteमुझे कल मिली थी ,एक गली में
ReplyDeleteमुंह चिढाते हुए
कि आ जा...मस्ती करते हैं.कुछ देर
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,
RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
शुक्रिया!!
Deleteजिंदगी का यूं मिलना
ReplyDeleteअनायास
अप्रत्याशित
अचंभा सा लगता है
पर सोचो जरा
यह अचंभा
यह पटखनी
यह रुठना
यह मनाना
यह हंसना
यह रुलाना
...और कितना कुछ
इस जिंदगी के गलियारों में
विरोधाभास सा है
शायद तभी वह
सुंदर है और
धमकाने का सही
हक भी है उसे
.
ताकि हम उसे जान सकें
जी सकें उसके हर रूप रंग को
.
वाह जी वाह...आपकी टिप्पणी जो कुछ मुझसे कहना छूट जाता है...वो सब भी कह देती है.शुक्रिया!!
Deleteआप को पढ़कर जो महसूस होता है,बस उसी को शब्दों में बांध देता हूं। बस काव्य रचना का ज्ञान नहीं है...हां जैसे भी भाव उद्घाटित होते हैं उकेर देता हूं उन्हें,जस का तस। आपको अच्छा लगता है तो मेरी खुशी बढ़ जाती है...
Deleteबहुत दिन हो गए...आपकी नई कविता नहीं दिखाई दी और न ही आप. कहां हैं आप आजकल?
Deleteजी हाँ जिंदगी ऐसीच है, पण उसके साथ चलते रहने का, मस्त रहने का... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअपने धमकाने के अंदाज़ में ....
ReplyDeleteबच्चू ...बच के रहने का
संभल के चलने का,अपुन से...
..........ज़िन्दगी हैईच है....बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपसे
कभी हंसाती है कभी रुलाती है ....
ReplyDeleteसच है जिंदगी ऐसी ही है .... पता नहीं होता कब क्या कर जाती है ...
संभल के चलने का अपुन से.............बाप रे बहुत खौफ वाले शब्द, पर सही कहा जिन्दगी हैईच ऐसी, डरना तो होगा ही. बहुत अच्छी रचना, बधाई.
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