ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, June 16, 2012
शायद ...
सही कहा तुमने ...शायद
किसी चीज़ का कोई भरोसा नहीं है
और फिर इस मुए चाँद का तो कतई नहीं
रोज तो घटता बढ़ता रहता है .
चाँद को तुम टांगना
हाथ से गोल कर .
मुझे जो जैसा है
वैसा पसंद है .
मुझे बदलाव मंजूर नहीं
काटना छांटना बस का नहीं .
किस्मत के सितारे
होते गर साथ हमारे
तो यह हाल ही होता क्यूँ
मैं उसको ,वो मुझको
खोता ही क्यूँ ????
जो मेरा है,हर हाल मिलेगा मुझे
किसी सर्च लाईट की ज़रूरत नहीं
सितारों पे यकीन की ज़रूरत नहीं
बस अपने प्यार पे यकीन है,मुझे .
दाग और चोट मिलें तो मिल जाएँ
उनसे कोई गुरेज नहीं
बस इतनी सी अरज है
कि तुम भी मिल जाओ ,कभी
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मुझे भी जो जैसा है
ReplyDeleteवैसा पसंद है .
मुझे बदलाव मंजूर नहीं...
हमारे मन की बात कह दी आपने... सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद!!
Deleteबहुत सहजता से कही बात ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार!
Deleteमुझे जो जैसा है
ReplyDeleteवैसा पसंद है .
मुझे बदलाव मंजूर नहीं,,,,,
बहुत बेहतरीन सादगी से लिखी सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
थैंक्स!!
Deleteकोमल भावो की सहज अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteधन्यवाद!!
Deleteवाह ... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteशुक्रिया!!
Deleteमुझे जो जैसा है
ReplyDeleteवैसा पसंद है
मुझे बदलाव मंजूर नहीं
काटना छांटना बस का नहीं
सरल जीवन की पहचान है इन पंक्तियों में
लेकिन बाद की पंक्तियों में आशा और अपेक्षा का भाव है
जिससे जीवन में सरलता खो जाती है और द्वंद्व उमगता है
बाद की पंक्तियों में वह सादगी और सरलता खो रही है
पर प्रिय के मिलन के लिए सहन किए जाने वाले दाग और चोट सहन करने के मौलिक भाव में पुन:
सरलता पा ली है.
मनोज जी...जहां से शुरुआत हुई थी...अंत में उसी सरलता तक पहुँच ही गयी...भटकते भटकाते .अच्छा है ,न....अंत भला तो सब भला
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बेहतरीन रचना
दंतैल हाथी से मुड़भेड़
सरगुजा के वनों की रोमांचक कथा
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ब्लॉ.ललित शर्मा
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धन्यवाद!!
Deleteदाग और चोट मिलें तो मिल जाएँ
ReplyDeleteउनसे कोई गुरेज नहीं
बस इतनी सी अरज है
कि तुम भी मिल जाओ ,कभी... वाह क्या बात है
रश्मि जी...पसंद करने के लिए ,शुक्रिया!!
Deleteदाग और चोट मिलें तो मिल जाएँ
ReplyDeleteउनसे कोई गुरेज नहीं
बस इतनी सी अरज है
कि तुम भी मिल जाओ ,कभी...खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
हार्दिक धन्यवाद!!
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