ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Friday, April 20, 2012
खोज
मैं...आजकल
अपनी पहचान का सुराग ढूंढ रही हूँ .
तेरी मेरी आँखों में जो पलते थे साथ -साथ
आज वो सारे ख्वाब ढूंढ रही हूँ
बिछड गयी थी ,कुछ बरस पहले
खुद से ...एक मोड पे ...
जिस्म हूँ अपनी जान ढूंढ रही हूँ ,मैं
निशानियां याद करती हूँ
अपनी शिनाख्त करने के लिए
कुछ याद भी नहीं आता
बस इक तेरे नाम के सिवा
जो मेरे दिल के हर मोड पर खड़ा है
उस मील के पत्थर की तरह
जिस पर खुदे अक्षर मिट गए है
बताओ न कैसे ढूँढू खुद को
बिन तुमको पाए ...?
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बेहद खूबसूरत कविता.....आज कुछ खास कुछ अलग मनोभावों का अनुपम निरूपण
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना पढ़ने को मिली...निधि जी
शुक्रिया,पसंद करने के लिए
Deleteबेहद खूबसूरत शब्द और उतनी ही खूबसूरत कविता
ReplyDeleteथैंक्स!!
Deleteविभिन्न रूपों में इंसान खुद को ही ढूँढता है ....प्रशस्त भाव ....
ReplyDeletecoincidentally ...आज यही कुछ भाव मेरी कविता में भी हैं ....अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर .....!!
shubhkamnayen ....
सराहना हेतु धन्यवाद!!
Deleteखुद की खोज करना बहुत जरुरी है इंसान के लिए, लेकिन बड़ा कठिन काम है... गहन भाव.... शुभकामनाएं....
ReplyDeleteबेशक ,मुश्किल तो है.
Deleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteथैंक्स!!
Deleteआँखों में ...ख्यालों में ... सब तो वहीँ है
ReplyDeleteवही होना ही तो...मुझे बताता है कि ज़िंदा हूँ मैं.
Deleteवाह.....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन खुबशुरत रचना लगी,...निधि जी,.
ReplyDeleteMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
हार्दिक आभार!!
Deleteमैं...आजकल
ReplyDeleteअपनी पहचान का सुराग ढूंढ रही हूँ .
और ये तलाश जल्दी ही पूरी हो.....
आमीन....
आपकी दुआ क़ुबूल हो..........
Deleteबताओ न कैसे ढूँढू खुद को
ReplyDeleteबिन तुमको पाए ...………मन के कोमल भावों का खूबसूरत चित्रण्।
हार्दिक धन्यवाद !!!!
Deletewaah ...kya baat.... bahut khoob....
ReplyDeleteथैंक्स!!
Deleteखुद से मिलना और बिछड़ना
ReplyDeleteबार- बार बसना औ उजड़ना
जीवन के दो रूप
उसी ने रची छाँव और धूप
उसी ने रची छाँव और धूप.....
आत्म मंथन करती उत्कृष्ट रचना, वाह !!!!!!!!
हार्दिक आभार ...पसंद करने के लिए.
Deleteबताओ न कैसे ढूँढू खुद को
ReplyDeleteबिन तुमको पाए ...?
मुश्किल है...
बड़ी मुश्किल है ,हैं ना...कुमार.
Deleteबिछड गयी थी ,कुछ बरस पहले
ReplyDeleteखुद से ...एक मोड पे ...
जिस्म हूँ अपनी जान ढूंढ रही हूँ ,मैं... क्या लिखा है ... कमाल ... !!
शुक्रिया ...सराहने के लिए.
DeleteNidhi...ab jo usay paa na sakto to kaise shinakht kar payenge?
ReplyDeleteHai koi man ko bhaane wala jawaab aapke paas? yaadon ka sahara na dijiyega...
शेफाली..उसे नहीं पा पाए तो शिनाख्त नहीं हो पायेगी..यूँ ही रहेंगे...अधूरे से..बिना किसी पहचान के
Deleteaapke jawaab mai sach ki niraasha hai! Kaash umeed ki kiran bhi hoti magar mai janti hu jo beet gaya vo vapas kabhi nahi aata.
Deleteकई बार निराशा ही हाथ लगती है....हाथ खाली के खाली .
Deleteमैं...आजकल
ReplyDeleteअपनी पहचान का सुराग ढूंढ रही हूँ .
तेरी मेरी आँखों में जो पलते थे साथ -साथ
आज वो सारे ख्वाब ढूंढ रही हूँ....
बेहतरीन रचना निधि जी ...
इंदु...सराहने के लिए,शुक्रिया!!
Deleteजीवन के रस्ते सीधे क्यूँ नहीं होते ..भूलभुलैया में खो जाना नहीं चाहते ...पर खोना पड़ता है ..रुक जाते हैं हम ,पर समय चलता रहता है ...आओ हाथ थामो ..चल चलें सपनीली दुनिया में ..पहचान ढूँढने ..शायद कोई भूला मुसाफिर वहाँ मिल ही जाए
ReplyDeleteजादू है तेरी बातों में...उम्मीद बंध जाती है....भूले मुसाफिर के मिलने की .सपनीली दुनिया में ले जाने वाली परी हो तुम !!
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