ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Wednesday, April 11, 2012
सिगरेट और तेरी याद
तुम्हारी याद....
सिगरेट के धुंए सी...
कपड़ों ,बालों,उँगलियों तक
बस जाने वाली...है .
रग-रग में दौडती है
जानलेवा ज़हर सी
हरेक आती-जाती सांस के साथ
अंदर उतरने वाली ..
दिल को जलाने वाली...
लगातार खांसने से
आँख में आये पानी सी
अधमरा कर देती है.
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ख़त्म होती है, तलब फिर ....
ReplyDeleteरश्मि जी......सही कहा,आपने.
Deleteखत्म कहाँ होती है और बढ़ जाती है तलब :):)
ReplyDeleteकुछ पलों के लिए लगता है खत्म हो गयी ..पर,तलब तो थोड़ी देर में ही फिर जोर मारने लगती है
Deleteबहुत अनुपम विम्ब...लाज़वाब रचना...
ReplyDeleteबिम्ब पसंद करने के लिए,शुक्रिया!!
Deleteआह... फिर भी आती है ये याद...
ReplyDeleteयाद पे कभी किसी का जोर कहाँ चलता है.
Deleteयह साथ कभी नहीं छोडती .......
ReplyDeleteनहीं छोडती.... कभी .
Deleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया !!
Deleteयाद न जाए बीते दिनों की,....
ReplyDeleteबेहतरीन भाव पुर्ण रचना,बहुत सुंदर कोमल अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
हार्दिक धन्यवाद!!
Deleteअंदर उतरने वाली ..
ReplyDeleteदिल को जलाने वाली...
लगातार खांसने से
आँख में आये पानी सी
अधमरा कर देती है.
बहुत खूब.....
बुरी आदतें ऐसे ही छूटती है...
और साथ भी......!!
बुरी आदतें......और साथ ...कहाँ छूटते हैं?
Deleteगज़ब...प्रेम हो तो ऐसा... सिगरेट के धुएं की तरह...जानलेवा. बहुत प्यारी रचना, बधाई.
ReplyDeleteप्यार जानलेवा ही होता है,अधिकतर.
Deleteवाह निधि जी ....रचना बहुत सशक्त और सुन्दर रची है आपने...
ReplyDeleteआपका लिखा पढ़ने की बात ही कुछ और है !!!
आपका यह कहना ..बहुत है मेरे लिए .
Deleteयादें धुंए सी ....जान लेवा ...दिल को जलाने वाली ...अधमरा करने वाली ...फिर भी वो यादें सिने से लगायी है .....कपड़ों , बालों और उँगलियों तक बसाली है वो यादें ......फिर भी वो बे-फ़िक्र धुंवा निकालते ही जाते है......बिना सोचे ......के वो आपके लिए क्या मायने रखता है .....आपके ऊपर क्या असर होता है ......वो ज़हर कैसे आप हर सांस में उतारती रहती है....... क्या किया जाये ?..कमबख्त ये दिल धुंवेमे यादें ढूंढ़ रहा है !!!!
ReplyDeleteनयंक जी ..क्या किया जाये ..यादें होती ही ऐसी हैं....बस जाती हैं..भीतर तक.अधमरा कर देती हैं,अक्सर.
Deleteसिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ....और प्यार करना जानलेवा
ReplyDeleteपर इस चेतावनी को याद कौन करता है
तूलिका...
Deleteसबके चेताने के बाद भी कर बैठे प्यार
अब न कुछ होगा सब दुआ दवा,बेकार
यादों की तल्खियाँ सच में किसी ज़हर से कम नहीं लगती कभी-कभी पर ये ऐसी होती हैं जीते हुए मरते रहते हैं और मरते हुए भी जी जाते हैं.
ReplyDeleteबहुत ही अलग और नयी है आपकी ये कविता.
पसंद करने और सराहने के लिए ,शुक्रिया!!यादों की तल्खी जीना मुश्किल देती है,अधिकतर .
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