Wednesday, April 11, 2012

सिगरेट और तेरी याद


तुम्हारी याद....
सिगरेट के धुंए सी...
कपड़ों ,बालों,उँगलियों तक
बस जाने वाली...है .

रग-रग में दौडती है
जानलेवा ज़हर सी
हरेक आती-जाती सांस के साथ
अंदर उतरने वाली ..
दिल को जलाने वाली...
लगातार खांसने से
आँख में आये पानी सी
अधमरा कर देती है.

26 comments:

  1. ख़त्म होती है, तलब फिर ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. रश्मि जी......सही कहा,आपने.

      Delete
  2. खत्म कहाँ होती है और बढ़ जाती है तलब :):)

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुछ पलों के लिए लगता है खत्म हो गयी ..पर,तलब तो थोड़ी देर में ही फिर जोर मारने लगती है

      Delete
  3. बहुत अनुपम विम्ब...लाज़वाब रचना...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिम्ब पसंद करने के लिए,शुक्रिया!!

      Delete
  4. आह... फिर भी आती है ये याद...

    ReplyDelete
    Replies
    1. याद पे कभी किसी का जोर कहाँ चलता है.

      Delete
  5. यह साथ कभी नहीं छोडती .......

    ReplyDelete
    Replies
    1. नहीं छोडती.... कभी .

      Delete
  6. सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया !!

      Delete
  7. याद न जाए बीते दिनों की,....
    बेहतरीन भाव पुर्ण रचना,बहुत सुंदर कोमल अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....

    RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
    RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद!!

      Delete
  8. अंदर उतरने वाली ..
    दिल को जलाने वाली...
    लगातार खांसने से
    आँख में आये पानी सी
    अधमरा कर देती है.

    बहुत खूब.....
    बुरी आदतें ऐसे ही छूटती है...
    और साथ भी......!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बुरी आदतें......और साथ ...कहाँ छूटते हैं?

      Delete
  9. गज़ब...प्रेम हो तो ऐसा... सिगरेट के धुएं की तरह...जानलेवा. बहुत प्यारी रचना, बधाई.

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्यार जानलेवा ही होता है,अधिकतर.

      Delete
  10. वाह निधि जी ....रचना बहुत सशक्त और सुन्दर रची है आपने...
    आपका लिखा पढ़ने की बात ही कुछ और है !!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका यह कहना ..बहुत है मेरे लिए .

      Delete
  11. यादें धुंए सी ....जान लेवा ...दिल को जलाने वाली ...अधमरा करने वाली ...फिर भी वो यादें सिने से लगायी है .....कपड़ों , बालों और उँगलियों तक बसाली है वो यादें ......फिर भी वो बे-फ़िक्र धुंवा निकालते ही जाते है......बिना सोचे ......के वो आपके लिए क्या मायने रखता है .....आपके ऊपर क्या असर होता है ......वो ज़हर कैसे आप हर सांस में उतारती रहती है....... क्या किया जाये ?..कमबख्त ये दिल धुंवेमे यादें ढूंढ़ रहा है !!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. नयंक जी ..क्या किया जाये ..यादें होती ही ऐसी हैं....बस जाती हैं..भीतर तक.अधमरा कर देती हैं,अक्सर.

      Delete
  12. सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ....और प्यार करना जानलेवा
    पर इस चेतावनी को याद कौन करता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. तूलिका...
      सबके चेताने के बाद भी कर बैठे प्यार
      अब न कुछ होगा सब दुआ दवा,बेकार

      Delete
  13. यादों की तल्खियाँ सच में किसी ज़हर से कम नहीं लगती कभी-कभी पर ये ऐसी होती हैं जीते हुए मरते रहते हैं और मरते हुए भी जी जाते हैं.
    बहुत ही अलग और नयी है आपकी ये कविता.

    ReplyDelete
    Replies
    1. पसंद करने और सराहने के लिए ,शुक्रिया!!यादों की तल्खी जीना मुश्किल देती है,अधिकतर .

      Delete

टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

Followers