ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, April 14, 2012
स्क्रीचिंग हाल्ट
मेरे आज में क्यूँ चले आते हो?
बोलो ?
कितना ही मना करूँ
फिर भी चले ही आते हो?
इस तरह तुम्हारा आना
चाहें वो यादों में हो..
या फिर ख़्वाबों ,ख्यालों में
मेरी ज़िंदगी को ....
...................
स्क्रीचिंग हाल्ट पे ले आता है.
बीते हुए कल और आज में एक्सीडेंट न हो
उसके लिए ,
मुझे कितनी जोर से ब्रेक लगाने पड़ते हैं
दिल उछल कर जैसे हाथों में आ जाता है
छोडो ..तुम कभी नहीं समझोगे ...
बाज आओ ...अब तो...
मत आओ न ...मेरे पास
मेरी सोच से भी दूर चले जाओ न
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बाज आओ ...अब तो...
ReplyDeleteमत आओ न ...मेरे पास
मेरी सोच से भी दूर चले जाओ न
बहुत सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
तहे दिल से शुक्रिया!!
ReplyDeleteयादों के साये से निकालना ज़रूरी है वरना सावधानी हटी दुर्घटना घटी....
ReplyDeleteयह दुर्घटना आय दिन घटती ही रहती है.
Deleteइस तरह तुम्हारा आना
ReplyDeleteचाहें वो यादों में हो..
या फिर ख़्वाबों ,ख्यालों में
मेरी ज़िंदगी को ....
...................
स्क्रीचिंग हाल्ट पे ले आता है.
सुंदर शब्द संयोजन...
थैंक्स!!
Deleteसही चित्रण मुझे तो यह कविता सच्चाई के बहुत क़रीब लगी....निधि जी
ReplyDeleteदिल से लिखती हूँ...इसलिए सच्चा ही लिख पाती हूँ.
Deleteछोडो ..तुम कभी नहीं समझोगे ...सारे भाव इसी में निहित हैं
ReplyDeleteयह उलाहना भर है...
Deleteमेरी सोच से भी दूर चले जाओ न....
ReplyDeleteसम्भव है...???
इसका उत्तर हम सबको पता है कि.... यह संभव नहीं
Deleteबहुत खूब ... पर शायद वो नहीं आते .. उनकी यादें बरबस चली आती हैं अपने मन के ही किसी कोने से ...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!!पसंद करने के लिए.
Deleteमन पर स्क्रीचिंग हाल्ट के निशान आ जाते हैं. कविता सुंदर तरीके से भाव को व्यक्त करती है.
ReplyDeleteआपकी सराहना हेतु ,आभार!
Deleteमुझे कितनी जोर से ब्रेक लगाने पड़ते हैं
ReplyDeleteदिल उछल कर जैसे हाथों में आ जाता है
छोडो ..तुम कभी नहीं समझोगे ..
...सच कुछ लोगों की फितरत कभी नहीं बदलती..
कुछ लोगों की फितरत कभी नहीं बदलती.....सच.
Deletebilkul sabke zindagi k kareeb lagti hai aapki ye rachna....shayad sabka sach bhi ham use mane ya nkar den ,par dil ko chhuti hui rachna hai .......
ReplyDeleteआपको रचना अच्छी लगी ...मेरा सौभाग्य है.
Deleteहार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteब्रेक मत लगाया करो
ReplyDeleteगाड़ी सड़क के किनारे
थोड़ी देर ले जाया करो
जब निकल जाये वो
उसकी गाड़ी के पीछे
हो जाया करो ।
़़़़
बहुत खूबसूरत रचना !!!
ऐसा संभव होगा क्या ?सामने से कोई अचानक आए तो ब्रेक तो बनता है..एक्सीडेंट से बचने के लिए
Deleteजब तक संबंध हैं,तभी तक दुनिया है। वे न रहे,तो दुनिया भी बेमानी होगी।
ReplyDeleteसहमत हूँ,आपसे .
Deleteबीते हुए कल और आज में एक्सीडेंट न हो
ReplyDeleteउसके लिए ,
मुझे कितनी जोर से ब्रेक लगाने पड़ते हैं
दिल उछल कर जैसे हाथों में आ जाता है
....बहुत सच कहा है....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
आपका शुक्रिया...रचना को पसंद करने के लिए .
Deleteशब्द सामर्थ्य, भाव-सम्प्रेषण, लयात्मकता की दृष्टि से कविता अत्युत्तम है।
ReplyDeleteआभार !!
Deleteनिधि .... कह भी रही हो.. और जानती भी हो कि वो जिसे उलाहना दे रही हो आने की.....
ReplyDeleteवो कभी गया ही नहीं था कहीं !
वो तो तिरता ही रहा सदा , साँसों में..... धमनियों में ....स्पंदन में....प्राणों में !.....
सुबह की लाली उसीका रंग लेके आती है.......साँझ का धुन्धलका उसीके प्रेम में गहराता है..... .रात की कालिमा उसकी प्रीत में और प्रगाढ़ होती है !.....
हवाएँ जब सरसराती हैं ....तो उसीके स्पर्श का उन्माद होता है ....
मौसम जब संवरतें हैं....तो वो ही शिराओं में नए गीत गुनगुनाता है प्रणय के .....
नहीं ! वो तो कभी , कहीं गया ही नहीं.....जो लौट के आएगा ...
ये तो इक हूक है जो उठती है प्राणों की गुहा से कहीं...
एक कसक ...एक शूल सी बीते पलों के लिए......एक आदिम आर्तनाद भर !
और इस आर्तनाद को रोकना असाध्य है......
क्योंकि ये कभी द्वार पे दस्तक दे कर नहीं आता !....
अनुमति लेकर भी नहीं आता कभी .....ज़रुरत ही कहाँ है ?
ये तो चला आता है मन के किसी भूले से रोशनदान से.....आस की खिड़की ...... अभीप्सा के दरवाजों की अनदेखी दरारों से ...
ये आता है अनायास ...अनपेक्षित....अयाचित ....साधिकार !
फिर आप चाहे ' स्क्रीचिंग हॉल्ट ' लगायें....ब्रेक लगायें.....चाहे आपका दिल उछल कर हाथों में ही क्यों न आ जाए....कोई फ़र्क नहीं पड़ता !
इश्क़ का मुंसिफ़ बड़ा ज़ालिम है....
अपना सूद लिए बगैर वो छोडनेवाला भी नहीं !
मिर्ज़ा ग़ालिब आख़िर यूँ ही तो नहीं फ़रमा गए ......
"ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ ..."
ह्रदय वेधी कृति निधि !......
दिल सचमुच उछल के हाथ में आ गया !