क्या था वो
सुबह को तो
याद नहीं रहता जो
बस होता रहता है
इक अच्छा सा एहसास
कि जो देखा वो था ख़ास
उस ख़्वाब सरीखे हो तुम
ख़्वाब हो तुम वही बने रहना
खूबसूरत प्यास बने रहना
ख़्वाबों का होना ज़रूरी है
बताते हैं ये
कितनी तमन्नायें अधूरी हैं
काली रातों की नाउम्मीदी में
तुमसे आस का सवेरा झांकता है
तुम्हें सच करने की कोशिश में
पा लेने की उम्मीद पे
कोई अपने दिन रात काटता है
सुबह को तो
याद नहीं रहता जो
बस होता रहता है
इक अच्छा सा एहसास
कि जो देखा वो था ख़ास
उस ख़्वाब सरीखे हो तुम
ख़्वाब हो तुम वही बने रहना
खूबसूरत प्यास बने रहना
ख़्वाबों का होना ज़रूरी है
बताते हैं ये
कितनी तमन्नायें अधूरी हैं
काली रातों की नाउम्मीदी में
तुमसे आस का सवेरा झांकता है
तुम्हें सच करने की कोशिश में
पा लेने की उम्मीद पे
कोई अपने दिन रात काटता है
"काली रातों की नाउम्मीदी में
ReplyDeleteतुमसे आस का सवेरा झांकता है"
सुन्दर प्रयोग...:-)
बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
ReplyDelete