ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Monday, December 12, 2011
नया हुनर
वक्त.......बड़ा कमबख्त
सरपट दौड़ा जाता है..
आजकल उसके पीछे भाग रही हूँ ..
सारा दिन इसी कोशिश में लगी हूँ ...
कि
वक्त की गिरह से
कुछ लम्हें चुरा लूं .
ऐसे कुछ लम्हे जिनमें
केवल हों ...
"मैं" और "तू".
उन क्षणों में न हो कोई दरमियाँ
जी लें उनमें ....हम सदियाँ .
देखो,समय की जेब क़तर पाती हूँ या नहीं ?
कतरे जो झरेंगे,वो समेट पाती हूँ या नहीं ?
आखिर,कुछ पलों को ...
तेरे साथ को पा लिया
देख न...तेरे प्यार ने
एक नया हुनर सिखा दिया
मुझे खुद नहीं पता चला
कब गिरह्कटी का इल्म आ गया .
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वक़्त की गिरह से लम्हें चुराने का प्रयास तो सफल हो गया आपका...
ReplyDeleteकोई लम्हा ही तो उतर आया है इस रचना में!
बधाई:)
Bahut sundar prastuti...
ReplyDeleteMeri kavita :Waqtt kambakht hai....yahan padein (http://www.poeticprakash.com/2011/07/blog-post.html)
वाह ...बहुत सुन्दर कविता..
ReplyDeleteमुझे बेहद पसंद आई..
आशा है आपके ब्लॉग में अक्सर ऐसा पढ़ने मिलेगा.
वंदना...थैंक्स!!
ReplyDeleteअनुपमा....बड़ी मुश्किल से वक्त की जेब काट पायी...
ReplyDeleteप्रकाश...शुक्रिया!!
ReplyDeleteविद्या...धन्यवाद.मैं स्वयं भी चाहूंगी कि आपको निराश न करूँ.
ReplyDeleteदेखो,समय की जेब क़तर पाती हूँ या नहीं ?
ReplyDeleteकतरे जो झरेंगे,वो समेट पाती हूँ या नहीं ?
आखिर,कुछ पलों को ...
तेरे साथ को पा लिया
देख न...तेरे प्यार ने
एक नया हुनर सिखा दिया
यह पंक्तियाँ विशेष अच्छी लगीं।
सादर
Bhavapoorn rachana prastuti...abhaar
ReplyDeleteयशवंत....शुक्रिया...केवल रचना को पसंद करने के लिए नहीं बल्कि इसलिए कि तुमने यह बताया कि विशेष रूप से क्या अच्छा लगा ...मैं आशा करूंगी कि जब कोई कमी लगेगी तो भी तुम इसी तरह विशेष रूप से उस और इंगित करोगे
ReplyDeleteमहेंद्र जी...तहे दिल से आपका आभार ...रचना को पसंद करने के लिए.
ReplyDeleteवक्त.......बड़ा कमबख्त
ReplyDeleteसरपट दौड़ा जाता है..
आजकल उसके पीछे भाग रही हूँ ..
सारा दिन इसी कोशिश में लगी हूँ ...
...भावनाओं की मखमली चादर में लिपटी रचना.
शब्दों ने मात्राओं से कहा ""मैं" और "तू".!!"
संजय जी...बहुत-बहुत शुक्रिया!!
ReplyDeleteदेखो,समय की जेब क़तर पाती हूँ या नहीं ?
ReplyDeleteकतरे जो झरेंगे,वो समेट पाती हूँ या नहीं ?
आखिर,कुछ पलों को ...
तेरे साथ को पा लिया
देख न...तेरे प्यार ने
एक नया हुनर सिखा दिया
मुझे खुद नहीं पता चला
कब गिरह्कटी का इल्म आ गया .
BAHUT SUNDAR ABHIVYAKTI VAH
नवीन मणि जी....हार्दिक धन्यवाद...ब्लॉग पर आने,रचना को पढ़ने एवं सराहने हेतु.
ReplyDeleteदेखो,समय की जेब क़तर पाती हूँ या नहीं ?
ReplyDeleteकतरे जो झरेंगे,वो समेट पाती हूँ या नहीं ?...bahut hi khoobsurat chaah
बहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteरश्मि जी ....देखिये,कब पूरी हो ,...ये खूबसूरत चाह...
ReplyDeleteउर्मी....आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!!
ReplyDeleteदेख न...तेरे प्यार ने
ReplyDeleteएक नया हुनर सिखा दिया
मुझे खुद नहीं पता चला
कब गिरह्कटी का इल्म आ गया...aapne behtarin ilm seekh liya..pyaar me girahkati ka maja hee kuch aaur hai..jeewan ke kuch hansi pal kuch hansi yaadein kaphi hian waki ke sare jeewan ke badle..sadar
आशुतोष जी ...वाकई,प्यार में ....लम्हें,छोटी -छोटी खुशियाँ चुराने का अपना एक अलग ही आनंद है .धन्यवाद ,रचना को पसंद करने के लिए.
ReplyDeleteदेखो,समय की जेब क़तर पाती हूँ या नहीं ?
ReplyDeleteकतरे जो झरेंगे,वो समेट पाती हूँ या नहीं ?
bahut khoob...
प्रियंका....:-)))))
ReplyDeleteगिरहकट नहीं हैं हम .....
ReplyDeleteलम्हों में प्रेम की सदिया जीने वाले
दरवेश हैं ...........
प्रेम को पाँचो इंद्रियों से
महसूस करते हैं.....
नसों मे गर्म लहू सा
दौड़ाते हैं ......
हृदय मे शोलों सा
दह्काते हैं.......
ऐसी गिरहकटी में
हाथ जलाओ......
प्रीत लुटाओ ...
.........तो जाने
तूलिका ...बात में दम है..खासतौर पे यह दरवेश वाली बात तो कहीं अंदर तक उतर गयी...
ReplyDeleteपर,मेरी जान कभी चोरी का आनंद उठाओ तो जानोगी कि जो मज़ा चोरी में है वो दबंगई में नहीं.
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ReplyDeleteकाट कर जो वो मेरी जेब ले गए, साथ सारे छेद ले गए,
ReplyDeleteमुश्किल से छुपाया था मैने वो मेरी ग़ुरबत के भेद ले गए|
कुछ इंतज़ार करते तो भर देता दामन उनका फूलों से मैं,
बहार से पहले तोडे फूल वो पतझड़ के चंद पत्ते ले गए|
राजन.........ह्म्म्म्म्म्म्म!!
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