ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Thursday, December 8, 2011
अचानक......
अचानक .......
ज़िंदगी की इस राह पे
चलते-चलते
एक मोड पर
तुम मिल गए ..
जुड गयी तुमसे
बंध गयी तुमसे
अब,
जब भी कोई पूछता है
कि क्या है हमारे बीच
तो ,जवाब देते नहीं बनता
हरेक उस रिश्ते से ऊपर रखती हूँ ,इसे
जिनमें ,मैं जो नहीं हूँ वो दिखाती हूँ
दूसरों के मन मुताबिक ढलती जाती हूँ
क्यूंकि
यही बेनाम सा रिश्ता
जो तेरे मेरे दरमियाँ है
मेरी अस्मिता को सुरक्षित रख
मुझे जीने की वजह देता है .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुंदर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअनाम रिश्तों के बारे में कुछ बताना मुनासिब भी नहीं, कोई समझता नहीं.... बेवजह बाल की खाल निकल जाती है
ReplyDeleteललित जी...आपका आभार!
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी..आपकी सलाह याद रखूंगी
ReplyDeleteमेरी अस्मिता को सुरक्षित रख
ReplyDeleteमुझे जीने की वजह देता है .
sunder bhav ..
अनुपमा...किसी की अस्मिता को आप तभी सुरक्षित रख पायेंगे जब आप उसे बेपनाह चाहें ...
ReplyDeleteसुन्दर भाव ...
ReplyDeleteसंगीता जी ...धन्यवाद !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर काविश ...
ReplyDeleteसामाजिक परिस्थितियां कभी कभी प्यार जैसे मधुर भाव को भी छुपाने को मजबूर करती हैं...
शुभकामनाएं!!
बेनामी रिश्ता कभी कब्जी जीवन का संबल बन जाता है ... रिश्तों को संभालना चाहिए ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रिश्ता है...
ReplyDeleteभावों से नाजुक शब्द....बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteयही तो खूबी है रिश्तों की.. इतने नाज़ुक कि हाथ लगाते ही बिखर जाएँ... हर बंधन से परे.. न कोई बाँध पाया है, न कोई बाँध सकता है.. बहुत ही कोमल है यह कविता!!
ReplyDeleteआपकी हर रचना बेहद खूबसूरत होती है..इन दिनों निखार और भी निखर रहा है..!!! ढेरों शुभकामनाएँ..!!!
ReplyDelete...
"पाया है तुमसे..
अस्तित्व अपना..
रखना ह्रदय के समीप..
देना नाम 'अमूल्य सपना'..!!"
...
Wah!!! Bahut sundar bhav....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
very beautifully written .. and very very sweet post....Nidhi ji
ReplyDeletevery touching....
ReplyDeleteविद्या...यही तो दुर्भाग्य है कि प्यार अधिकतर हमें अपराधबोध से ग्रसित कर देता है ..क्यूंकि समाज उसे खूबसूरत एहसास की तरह न देख कर ...एक पाप के रूप में देखता है
ReplyDeleteदिगंबर जी ...आपने बिलकुल सही कहा रिश्तों को हमेशा संभाल कर रखना चाहिए
ReplyDeleteकुमार.........शुक्रिया!!
ReplyDeleteसुषमा...शब्द विन्यास और भावों के तारतम्य को पसंद करने हेतु धन्यवाद!!
ReplyDeleteसलिल जी...रिश्तों की खूबी यही है..न जाने कब किससे जुड जाते हैं और फिर ताउम्र ....साथ चलते हैं.
ReplyDeleteप्रियंका...थैंक्स!!तुम्हारी शुभकामनायें स्वीकार करती हूँ.तुम्हें अच्छा लगा पढकर यह जान कर मुझे अच्छा लगा .
ReplyDeleteप्रकाश....हार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteसंजय जी...तहे दिल से शुक्रिया ,आपका.
ReplyDeleteमैं आपको आपके लेखन कि वजह से जानता हूँ निधि जी ...और जैसे जैसे आपको पढ़ता गया हूँ आपकी अतुलित गहराई से रूबरू होता गया हूँ ...और हर एक कविता के बाद आपके प्रति मेरे मन में प्रेम श्रद्धा और आदर बढ़ता ही गया है !
ReplyDeleteआपके भाव सच में कमाल के हैं हर शब्द छूकर गुजरता है !
आनंद जी ...आपका बड़प्पन है ...!!मैं तो बस लिखने के लिए लिख देती हूँ..नीम बेहोशी में ..खुद को भी नही पता होता क्यूँ लिखा है..कहाँ से आया ?
ReplyDeleteआप के ये शब्द मुझे प्रोत्साहित करने हेतु हैं ..मैं जानती हूँ.
... बेहतरीन रचना ... निधि ... :)
ReplyDeleteमुकर्रर सबकुछ मुद्दत से मुकद्दर में
कुछ भी यहाँ ‘अचानक’ नहीं होता
चला बिहारी ब्लॉगर बनने..शुक्रिया!!कविता को पसंद करने के लिए !!
ReplyDeleteअमित...थैंक्स!!बहुत खूबसूरत शेर है...सच्चाई के करीब क्यूंकि सच में मुकद्दर का कुछ पता नहीं होता
ReplyDelete