ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, November 5, 2011
पास रहना
तुम खफा हो जाते हो
मेरी गलतियों पर..
अक्सर, मेरी बेवाकूफियों पर
अपनी नाराज़गी भी जतलाते हो .
तुम खूब नाराज़ हो..खफा हो
मुझे कोई दिक्कत न कभी हुई है न होगी
मुझे पता है ,मैं तुम्हें मना लूंगी .
जो कभी यूँ हुआ
कि
तुम नहीं माने...
तो ,
सज़ा देना ....
मैं,हर सज़ा मानने को सहर्ष तैयार रहूंगी
बस...
मुझे छोड़ के दूर ना जाना
सामने रहना,पास रहना..........
और फिर चाहें कोई भी सज़ा दे देना .
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प्यार और अपनापन होता ही ऐसा है।
ReplyDeleteप्यार में नत स्वीकृति
ReplyDeleteविवेक जी....सही कहा..प्यार होता ही ऐसा है...
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी...प्यार में ,संपूर्ण समर्पण ही तो ध्येय होना चाहिए.
ReplyDeletepyar ki sarthak abhivaykti...
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद..................सागर!!
ReplyDeleteयही तो प्रेम की सर्वोच्च अवस्था है हर हाल से स्वीकार्य्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर निधि जी ! स्नेह और समर्पण की इंतिहा है ! यही समर्पण जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि और ऊर्जा का स्त्रोत बन जाता है ! बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति..!!!!
ReplyDeleteप्यारी सी ख्वाहिश ...
ReplyDeleteओह! आपका यह अपनत्व तो बहुत अच्छा लगा ,निधि जी.
ReplyDelete'रूठा है तो मना लेंगें...' यह गाना भी मुझे बहुत अच्छा लगता है.
बिलकुल...पास रहकर सजा मिले तो कोई बात नहीं....मगर दूरियाँ तो खुद सबसे बड़ी सजा होती हैं.....
ReplyDeleteयशवंत....बहुत-बहुत शुक्रिया!!
ReplyDeleteवंदना...मैं भी सहमत हूँ ,आपसे.
ReplyDeleteसाधना जी...मेरे भाव से सहमत होने के लिए और साथ ही साथ रचना को सराहने के लिए....धन्यवाद.
ReplyDeleteथैंक्स...............प्रियंका !!
ReplyDeleteसंगीता जी...छोटी सी ख्वाहिश है.
ReplyDeleteराकेश जी...चलिए,आपको एक अच्छे गाना की याद दिला दी,मैंने .
ReplyDeleteकुमार..........सच्ची,पास रह कर कोई कुछ भी सज़ा दे दे ...दूर न हो ...
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ......सुषमा !!
ReplyDeleteमैं,हर सज़ा मानने को सहर्ष तैयार रहूंगी.....
ReplyDelete:))
कितनी खूबसूरती से शब्दों का ताना बना बुना है आपने.
ReplyDeleteहरकीरत जी......शुक्रिया!!
ReplyDeleteसंजय जी ...बहुत-बहुत आभार !!
ReplyDeleteमोहब्बत से खूबसूरत सजा क्या होगी निधि ......ये वो दर्द है जिसकी कोई दवा नहीं....इस मर्ज़ को ताउम्र दिल से लगाने की सजा मुक़र्रर हुई है
ReplyDeleteतूलिका....मोहाब्बत जिसने की है वही समझ सकता है कि इसके दर्द भी इतने खूबसूरत क्यूँ लगते हैं ..सजाएं भी हसीं क्यूँ लगती हैं?
ReplyDeleteनिधि जी , अच्छी बात बताई है , प्रेम है तो अकड्पन किस लिए ? तुफ़ानी हवाओं में ताड़ (पाम ट्री) जैसे दरख़्त टूट के गिर जाते है पर छोटे पौधे जो हवा के रुख के साथ झुक जाते है उनको कुछ नहीं होता . बंधन वो भी प्यार का आपको मंज़ूर है, झुकना आप को स्वीकार्य है , निर्मानी आपका स्वभाव है फिर कौन भला आपसे दूर होना चाहेंगे ? तब....मन ... ये गीत गुनगुनाने को चाहेगा .......लूटे कोई मन का नगर बन के मेरा साथी ....! और सज़ा क्या हो सकती है ? वो ही बंधन की कैद जो आप को मंज़ूर है , स्वीकार्य है .......
ReplyDeleteनयंक जी....प्रेम में ..संपूर्ण समर्पण के बाद "मैं "शेष कहाँ रह जाता है.....मोहब्बत करने के बाद यदि अकड ...अहम...द्वैत शेष रह जाए तो वो प्रेम कहाँ???
ReplyDeleteSimply put, wonderfully expressed!!
ReplyDelete.. निहायत बेहतरीन कलाम है .. निधि .. इंसानी रिश्तों और जज्बातों की तर्जुबानी आपसे बेहतर मुमकिन नहीं है ..
ReplyDeleteमोहब्बत में रुसवाई का गम मत करना
ये काम किसी खौफ से कम मत करना
जो भी सजा मुनासिब है, दे दो मुझको
तुमसे गुजारिश है कोई रहम मत करना
baht sunder prastuti.....saaadaa se sHABDO SE EK NAZUK SI BHAVNAA KO LIKHA HAI...............:))<3
ReplyDeleteभैया....थैंक्स !!
ReplyDeleteअमित...तारीफ़ करना कोई आपसे सीखे....
ReplyDeleteआपके दोनों ही शेर बेहतरीन हैं.
डिम्पल....तहे दिल से शुक्रिया!!
ReplyDeleteनिधि जी ... अगर पास ना रहे तो ?
ReplyDeleteआनंद जी...नाराज़ हो के दूर ना जाएँ,कोई.
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