Saturday, November 5, 2011

पास रहना




तुम खफा हो जाते हो
मेरी गलतियों पर..
अक्सर, मेरी बेवाकूफियों पर
अपनी नाराज़गी भी जतलाते हो .
तुम खूब नाराज़ हो..खफा हो
मुझे कोई दिक्कत न कभी हुई है न होगी
मुझे पता है ,मैं तुम्हें मना लूंगी .

जो कभी यूँ हुआ
कि
तुम नहीं माने...
तो ,
सज़ा देना ....
मैं,हर सज़ा मानने को सहर्ष तैयार रहूंगी
बस...
मुझे छोड़ के दूर ना जाना
सामने रहना,पास रहना..........
और फिर चाहें कोई भी सज़ा दे देना .

38 comments:

  1. प्यार और अपनापन होता ही ऐसा है।

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  2. प्यार में नत स्वीकृति

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  3. विवेक जी....सही कहा..प्यार होता ही ऐसा है...

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  4. रश्मिप्रभा जी...प्यार में ,संपूर्ण समर्पण ही तो ध्येय होना चाहिए.

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  5. हार्दिक धन्यवाद..................सागर!!

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  6. यही तो प्रेम की सर्वोच्च अवस्था है हर हाल से स्वीकार्य्।

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  7. बहुत सुन्दर निधि जी ! स्नेह और समर्पण की इंतिहा है ! यही समर्पण जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि और ऊर्जा का स्त्रोत बन जाता है ! बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !

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  8. खूबसूरत अभिव्यक्ति..!!!!

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  9. ओह! आपका यह अपनत्व तो बहुत अच्छा लगा ,निधि जी.

    'रूठा है तो मना लेंगें...' यह गाना भी मुझे बहुत अच्छा लगता है.

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  10. बिलकुल...पास रहकर सजा मिले तो कोई बात नहीं....मगर दूरियाँ तो खुद सबसे बड़ी सजा होती हैं.....

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  11. यशवंत....बहुत-बहुत शुक्रिया!!

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  12. वंदना...मैं भी सहमत हूँ ,आपसे.

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  13. साधना जी...मेरे भाव से सहमत होने के लिए और साथ ही साथ रचना को सराहने के लिए....धन्यवाद.

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  14. थैंक्स...............प्रियंका !!

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  15. संगीता जी...छोटी सी ख्वाहिश है.

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  16. राकेश जी...चलिए,आपको एक अच्छे गाना की याद दिला दी,मैंने .

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  17. कुमार..........सच्ची,पास रह कर कोई कुछ भी सज़ा दे दे ...दूर न हो ...

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  18. खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  19. हार्दिक धन्यवाद ......सुषमा !!

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  20. मैं,हर सज़ा मानने को सहर्ष तैयार रहूंगी.....

    :))

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  21. कितनी खूबसूरती से शब्दों का ताना बना बुना है आपने.

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  22. हरकीरत जी......शुक्रिया!!

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  23. संजय जी ...बहुत-बहुत आभार !!

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  24. मोहब्बत से खूबसूरत सजा क्या होगी निधि ......ये वो दर्द है जिसकी कोई दवा नहीं....इस मर्ज़ को ताउम्र दिल से लगाने की सजा मुक़र्रर हुई है

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  25. तूलिका....मोहाब्बत जिसने की है वही समझ सकता है कि इसके दर्द भी इतने खूबसूरत क्यूँ लगते हैं ..सजाएं भी हसीं क्यूँ लगती हैं?

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  26. निधि जी , अच्छी बात बताई है , प्रेम है तो अकड्पन किस लिए ? तुफ़ानी हवाओं में ताड़ (पाम ट्री) जैसे दरख़्त टूट के गिर जाते है पर छोटे पौधे जो हवा के रुख के साथ झुक जाते है उनको कुछ नहीं होता . बंधन वो भी प्यार का आपको मंज़ूर है, झुकना आप को स्वीकार्य है , निर्मानी आपका स्वभाव है फिर कौन भला आपसे दूर होना चाहेंगे ? तब....मन ... ये गीत गुनगुनाने को चाहेगा .......लूटे कोई मन का नगर बन के मेरा साथी ....! और सज़ा क्या हो सकती है ? वो ही बंधन की कैद जो आप को मंज़ूर है , स्वीकार्य है .......

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  27. नयंक जी....प्रेम में ..संपूर्ण समर्पण के बाद "मैं "शेष कहाँ रह जाता है.....मोहब्बत करने के बाद यदि अकड ...अहम...द्वैत शेष रह जाए तो वो प्रेम कहाँ???

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  28. .. निहायत बेहतरीन कलाम है .. निधि .. इंसानी रिश्तों और जज्बातों की तर्जुबानी आपसे बेहतर मुमकिन नहीं है ..

    मोहब्बत में रुसवाई का गम मत करना
    ये काम किसी खौफ से कम मत करना

    जो भी सजा मुनासिब है, दे दो मुझको
    तुमसे गुजारिश है कोई रहम मत करना

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  29. baht sunder prastuti.....saaadaa se sHABDO SE EK NAZUK SI BHAVNAA KO LIKHA HAI...............:))<3

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  30. भैया....थैंक्स !!

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  31. अमित...तारीफ़ करना कोई आपसे सीखे....
    आपके दोनों ही शेर बेहतरीन हैं.

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  32. डिम्पल....तहे दिल से शुक्रिया!!

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  33. निधि जी ... अगर पास ना रहे तो ?

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  34. आनंद जी...नाराज़ हो के दूर ना जाएँ,कोई.

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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