ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Friday, September 30, 2011
उदासीन
तुमसे प्यार करना कितना सरल था ..
तुमसे नाराज़ हो जाना कितना आसान
रूठने में तुमसे पल भर लगाऊं
क्षण भर में फिर मैं मान जाऊं
तुम्हारे दुःख में दुखी होना
तुम सुखी हो तो मेरा सुखी होना
....आसानी से हो जाता था ये सब
तुम्हारी दुनिया अलग हो गयी है
मेरी दुनिया से
पर,पता नहीं कौन सी डोर जोड़े हुए है
मुझे,आज भी तुमसे ??.
कोशिश में हूँ..........
कि
तुम किसी और को चाहो
और मुझे खराब न लगे ..
तुम दूरी मुझसे बढ़ाओ
मुझे रत्ती भर न खले ..
तुमसे उदासीन हो पाऊँ ...
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एक समय ऐसा भी आता है जब हम उदासीन हो जाना चाह्ते हैं , जिससे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर !
वाणी जी....मुझसे,मेरे विचार से...सोच से सहमत होने हेतु....आभार .
ReplyDeleteअच्छी अभिवयक्ति....
ReplyDeleteचाहना दुखद है, पर इस विवश चाह को पूर्णता मिले ...
ReplyDeleteमन की उदासियों को उजागर करती रचना
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया......सुषमा .
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी...आमीन !!
ReplyDeleteयशवंत...आभार!!
ReplyDeleteसंगीता जी...धन्यवाद!!
ReplyDeletesahi kaha nidhi ji...lekin udaseen ho pana kaash aasan hota...aabhar
ReplyDeleteजिसे हम प्यार करते हैं,उससे उदासीन हो सकते हैं....??????
ReplyDeleteप्रियंका..उदासीन होना बहुत मुश्किल है...और अगर आप हो जाओ तो,अगले के लिए उससे बड़ी कोई सज़ा नहीं
ReplyDeleteकुमार...सही कहा तुमने..असंभव सा ही है .
ReplyDeletesahi kaha aapne..... acchi abhivaykti....
ReplyDeleteथैंक्स...सागर .
ReplyDeleteतुम किसी और को चाहो
ReplyDeleteऔर मुझे खराब न लगे ..
तुम दूरी मुझसे बढ़ाओ
मुझे रत्ती भर न खले ..
पर ऐसा कहां हो पाता है ।
सुंदर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना ।
अजय जी...हार्दिक धन्यवाद .
ReplyDeletebahut badhiyaa hai....sach....
ReplyDeleteराजीव जी ..पसंद करने हेतु,आभार!!
ReplyDelete@ निधि .............. स्नेह के समीकरण बड़े दुरूह होते हैं !......इसमें एक और एक भी एक ही होता है....और एक और शून्य भी एक !
ReplyDeleteस्नेह की लक्ष्मण रेखा में .......तर्क के ......विवाद के छद्म वेशी दशानन का कोई प्रवेश नहीं हो सकता ....ये तय है !
राग - अनुराग के कोमल तंतु आत्मा को ऐसे अटूट पाश में बाँध लेते हैं.........कि साँसों की डोर भले ही टूट जाए ......पर प्रीति का बंधन अक्षुणणः , अभग्न रहता है !
सम्बन्धों में कहीं कोई दूरी आ भी जाती है .........तो क्या मन भी उस परान्गमुखता को ; उतने ही सहज स्वीकार कर पाता है ?.............हम ऊपर से अपरिचय के , कितने भी आवरण क्यों न ओढ़ लें .........हमारी हर एक सांस फिर भी उतनी ही अभिन्न रहती है ना !.......कम से कम नारी के मन का तो यही सच है !
प्रीति का हिम खंड जितना ऊपर दिखता है............उससे कहीं अधिक नीचे छुपा होता है !..........जो दृष्टव्य है.....वही पूर्ण सत्य तो नहीं होता ना ?
तुम मुझसे दूर हो.......उदासीन हो......ये सच है !..........
पर वैसी ही , मैं भी हो सकूंगी , ऐसी तो कोई शर्त नहीं थी ना ???
क्योंकि ऐसा हो सके ...... संभव ही नहीं !!!
हाँ ! चाहती हूँ कि ऐसा हो .........पर नहीं होता !
तुम्हारी प्रीति मेरी आत्मा के ताने बानों में गुँथ चुकी है..........अब अपने को उधेड़े बगैर उसे अलग करना असंभव है !!!
सच ही तो है...........
स्नेह के समीकरण बड़े दुरूह होते हैं ...........इसमें एक और एक भी एक ही होता है.........और एक और शून्य भी एक !!!
अर्चि दी..आपकी लेखनी का कमाल है कि मेरी साधारण सी पोस्ट भी कमाल लगने लगती है ..
ReplyDeleteआप ने बिलकुल ठीक कहा कि प्रेम में,अनुरक्ति में..स्नेह में...तर्क,विवाद का कोई स्थान ही नहीं होता.प्यार और मोहब्बत में बदगुमानी तो ही नहीं सकती .
प्यार में यदि किसी कारण वश दूरी आ भी जाए तो भी प्रेम की ज्वाला धीमी भले ही पड़ जाए कभी बुझती नहीं...सुलगती रहती है
प्यार की वाकई कोई थाह नहीं होती ...कितना दिल में कितना ऊपर..कोई नहीं जान सकता...मन कहाँ स्वीकारता है..उदासीनता..नाटक भले कर लें औरों के सामने कि मैं परान्ग्मुख हो गयी पर अंदर ही अंदर अपने से ...जब खुद का सामना होता है तो सच सामने आ ही जाता है .
स्नेह के समीकरण बहुत दुरूह होते हैं...सच !!
बहुत मुश्किल है ऐसा हो पाना ... प्रेम में ऐसा कुछ नहीं हो पाता ..
ReplyDeleteविजय दशमी की मंगल कामनाएं ...
दिगंबर जी...धन्यवाद!! आपको एवं आपके अपनों को...विजयदशमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत भावुक रचना.. दिल को छूनेवाली.
ReplyDeleteधन्यवाद.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
बहुत बहुत शुक्रिया....संतोष जी.
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