ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Wednesday, August 24, 2011
तुम्हारी आँखें कुछ कहती हैं.....
तुम्हारी आँखें कुछ कहती हैं,मुझसे
पर,
कुछ और बयां करते हो तुम जुबां से .
बताओ,मैं किसे सच मानूँ ???
तुम्हारी नज़रों को पढ़ना अच्छा लगता है
क्यूंकि वो बयान ज्यादा सच्चा लगता है .
जुबां से तुम जब भी बोलते हो
कुछ कहने से पहले ..
ज़माने के डर से उसे तोलते हो.
जुबां में झूठ की परछाईं नज़र आती है .
जबकि ,आँखों की बात सीधे
दिल में उतर जाती है मेरे .
इसलिए
मेरे से जब कुछ कहना हो तुम्हें
तो,जुबां को आराम दे दो मेरे लिए
और बात करो मुझसे अपने नयन से
दिल की बात कहने पे भी न डरो किसी से .
नज़रों को नज़रों से बातें करने दो
खामोशी की आवाज़ को सुनने दो .
ये माना कि प्यार के रिश्ते बहुत गहरे हैं
पर जुबां पर आज भी ज़माने के पहरे हैं
इसलिए
चुप रह कर भी आँखों को आवाज़ दे दो
अपने ख्यालों को एक नयी परवाज़ दे दो .
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आदरणीय निधि जी
ReplyDeleteनमस्कार !
रूमानी भावों की लाजवाब प्रस्तुति
आपकी कविताएं भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से प्रभावित करती हैं
आँखों की सच्चाई को
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से व्यक्त किया है। बधाई
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDelete्वाह बहुत ही मनमोहक अन्दाज़ है…………सुन्दर भावप्रवण रचना।
ReplyDeleteशायद आँखें कभी झूठ नहीं बोलती....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteसुंदर..!!
ReplyDeleteसंजय जी...आपको रचना पसंद आई,जान कर अच्छा लगा .आपका शुक्रिया !!
ReplyDeleteकैलाश जी...धन्यवाद
ReplyDeleteवन्दना...हार्दिक आभार .
ReplyDeleteकुमार...मुझे तो यही लगता है कि आँखें झूठ नहीं बोलती .
ReplyDeleteउड़न तश्तरी जी...तहे दिल से शुक्रिया!!
ReplyDeleteप्रियंका...थैंक्स,डीयर .
ReplyDeleteआँखों और मन की भाषा एक ही हो जाये तो कहना क्या !
ReplyDeleteमोहक अभिव्यक्ति !
वानी गीत जी ....सच्ची...अगर ,आंखें और मन दोनों ही एक ही बात बोलें तो उससे बेहतर कुछ नहीं ..धन्यवाद ,पसंद करने हेतु .
ReplyDeleteये कविता पढ़ के एक फिल्म का गीत याद आ गया
ReplyDelete(नैनो कि मत सुनियों रे
नैना ठग लेंगे )
निधि जी ...पूरी कविता ही बेहद खूबसूरत है ......आभार
anu
आँखों और ज़बान के बयान के फर्क को
ReplyDeleteबहुत खूब समझा रही है आपकी ये कविता
वाह !!
अनु......हार्दिक धन्यवाद .मुझे यह गीत बहुत पसंद है...आपने अच्छा याद दिलाया , अभी सुनती हूँ जा कर.
ReplyDeleteअपने ख्यालो को नयी परवाज़ दे दो. क्या बात है.
ReplyDeleteयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
दानिश...हाँ कोशिश की थी कि आँखों की भाषा और जुबां की सम्प्रेषण शक्ति के अंतर को समझा सकूं .
ReplyDeleteस्वतंत्र नागरिक जी...शुक्रिया!!आपके लेख पढ़ने ,अवश्य आऊंगी .
ReplyDeleteअंकित जी...शुक्रिया!!पोस्ट को पढ़ने एवं पसंद करने के लिए .
ReplyDeleteबिन बोले ही बहुत कुछ कह जाती हैं आँखें ...
ReplyDeleteबहत लाजवाब भावपूर्ण ...
Nidhi ... kamaal ka lekha hai ...
ReplyDeleteदिगंबर जी....यूँ ही साथ बने रहने के लिए आभार .
ReplyDeleteब्रजेश ....आपसे क्या कहूँ....शुक्रिया देते भी नहीं बनता है लगता है कि जब आपके विचारों को ही कलमबद्ध कर रही हूँ तो आपसे क्या कहूँ?आप हमेशा यही कहते हैं न कि मैं भी यही सोच रहा था...शब्द तुमने दे दिए .
ReplyDeleteकल 31/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
जुबां से जब बोलते हो ... दुनिया के डर से कितनी बार तोलते हो ...
ReplyDeleteआखें सच्चाई बताती हैं ..सुन्दर रचना
निधि जी आपने बिलकुल सच कहा जो बातें आँखे कह देती हैं वो जुबान बयान नहीं कर पाती /क्योंकि आँखे दिल की भाषा बोलती है जिसमे कोई छल- कपट नहीं होता /शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई /
ReplyDeletePLEASE VISIT MY BLOG
www.prernaargal.blogspot.com thanks.
यशवंत...बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteसंगीता जी...हार्दिक धन्यवाद !!रचना पढने एवं पसंद करने के लिए
ReplyDeleteप्रेरणा...तहे दिल से शुक्रिया...मैं ज़रूर आऊंगी तुम्हारे ब्लॉग पर...जल्द ही
ReplyDeleteचाहती तो हूँ उसे दिल मैं बसा लूँ |
ReplyDeleteपर क्या करूँ आँखे सब राज़ खोल देती हैं |
बहुत खुबसुरत रचना |
.. बहुत उम्दा रचना है.. निधि....
ReplyDeleteसी लिए थे लब हमने उनके रूबरू मगर
निगाहों ने बढ़कर 'इज़हार-ए-तमन्ना' कर दिया
मीनाक्षी जी ...शुक्रिया !!ब्लॉग पर आप आयीं...रचना पढी एवं अपनी प्रतिक्रिया दी .
ReplyDeleteअमित...सुन्दर शेर...हाँ कई बार होता हैं यूँ की जो हम कह नहीं पाते...वो आँखें बोल देती हैं .
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