Friday, November 20, 2015

चुनना

तुमने चुनी अपनी सुविधा
अपनी पसंद को जिया
किसी और के मुताबिक़ चलना
किसी के जज़्बातों की कद्र करना
कभी ये सीखा ही कहाँ 
तुम तो फिर तुम हो न आखिर
अपने लिए जीते हो अपने लिए ही जियोगे
बाक़ी किसी की परवाह भला क्यों करोगे
यह जानते बूझते मैंने ठानी है
तुमसे कुछ कहना बेमानी है
अब ...बस अपने आप को
समेटने की कोशिश है
संभालने का प्रयास है
धीरे धीरे अपने को समझाना है
समझाते हुए ख़ुद को सिखलाना है
कि कुछ बातें अपने हाथ नहीं होतीं
और तुमसे जुड़ा मेरा सब कुछ
इन्हीं बातों में आ जाता है

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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