Friday, August 21, 2015

प्यार में पागल

नाराज़ थी तुमसे न जाने कबसे
पर जब बात हुई
कुछ मैंने कही
कुछ तूने कहीं
मेरा कहा कितना सुना पता नहीं
तेरी हर बात सीधी दिल में उतरी
उन बातों को दिल में संजोती रही
उनके साथ जीती रही मरती रही
कहां गया गुस्सा कहाँ गयी नाराज़गी
पता नहीं
तुमने कहा पागल हो क्या
मैं क्यों ऐसा करूंगा भला
बस ...तेरा इतना कहना
और मैंने जिसने सब झेला था
 क्यूं और कैसे  सब भुला दिया
तेरे इस एक पागल हो क्या ने
सब पिछला किया धरा बिसरा दिया
प्यार में पगलाना
इसी को कहते हैं क्या ??

1 comment:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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