Thursday, June 27, 2013

जेठ-आषाढ़


जेठ की तपती दुपहरी थी
गरम साँसों के बीच
लू भी जी जलाती थी.
तब...एकाएक
उसने कहा कि
वो दूर जाने वाला है
कुछ दिन का विरह
बीच में आने वाला है .

मैंने कहा,बता कर जाना
उसका कहना कि
मुझसे कहे बिना क्या
संभव होगा उसका जा पाना ?

वो गया ...
जब चला गया...
दुनिया ने बताया
जब लौटा ..तब भी....
जग ने ही खबर दी
उसकी वापसी की
बताने की ज़रूरत उसे
महसूस ही नहीं हुई .
उसकी ज़िंदगी वैसे ही
मेरे बिन भी चलती रही .

बड़े दिन बाद
एक दिन बात हुई
शिकवे हुए शिकायत हुई
पर,
उसकी आवाज़ की ठंडक
कलेजे के खून को जमा गयी
आषाढ़ के महीने में भी
रिश्तों में से गर्माहट
न जाने कहाँ गयी .

Tuesday, June 18, 2013

बादल


जब भी कभी

बादलों से बात हुई है.

उन्होंने यही कहा है ,हौले से

सफ़ेद रुई से हलके हम...

सबको नज़र आते हैं.

कोई नहीं समझता हमारा दर्द...

जब स्याह हो गहराता है.

तब ,बरसना हमारी खुशी नहीं..

तेरी मेरी दुआ का असर नहीं..

मोर की पुकार नहीं...

चकोर की प्यास नहीं..


बल्कि

अंतस की तकलीफ का बह जाना मात्र है.

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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