Saturday, August 27, 2011

किसी को मरते नहीं देखा...


जब... मैंने,आज तुमसे कहा
कि ,मैंने आज तलक
किसी को मरते नहीं देखा .
तुम खूब हँसे थे ,मुझ पर.
कहने लगे..यह संभव ही नहीं .
तुम्हारे.....
इस असंभव और हँसी के मर्म को ढूंढती रही .
उस हँसी की गूँज सुनती रही...सोचती रही
तो यह लगने लगा
कि सच कहा ,तुमने
क्यूंकि
भले मैंने किसी इंसान को दम तोड़ते ना देखा हो
पर............
खुद को खुद के अंदर कई बार मरा पाया है
अपने सपनों का तो खुद गला घोंट डाला है
अपने प्यार को दिल में ही दफनाया है
उम्मीदों को बेमौत मैंने ही मार डाला है
मैंने कैसे कह दिया
कि मैंने मौत नहीं देखी ..
आप सभी ने देखी होगी ...
जब अपने ख़्वाबों ...अपने मूल्यों
अपने आदर्शों,अपनी चाहतों ...
की अर्थी सजाई होगी .

Wednesday, August 24, 2011

तुम्हारी आँखें कुछ कहती हैं.....


तुम्हारी आँखें कुछ कहती हैं,मुझसे
पर,
कुछ और बयां करते हो तुम जुबां से .
बताओ,मैं किसे सच मानूँ ???
तुम्हारी नज़रों को पढ़ना अच्छा लगता है
क्यूंकि वो बयान ज्यादा सच्चा लगता है .
जुबां से तुम जब भी बोलते हो
कुछ कहने से पहले ..
ज़माने के डर से उसे तोलते हो.
जुबां में झूठ की परछाईं नज़र आती है .
जबकि ,आँखों की बात सीधे
दिल में उतर जाती है मेरे .
इसलिए
मेरे से जब कुछ कहना हो तुम्हें
तो,जुबां को आराम दे दो मेरे लिए
और बात करो मुझसे अपने नयन से
दिल की बात कहने पे भी न डरो किसी से .
नज़रों को नज़रों से बातें करने दो
खामोशी की आवाज़ को सुनने दो .
ये माना कि प्यार के रिश्ते बहुत गहरे हैं
पर जुबां पर आज भी ज़माने के पहरे हैं
इसलिए
चुप रह कर भी आँखों को आवाज़ दे दो
अपने ख्यालों को एक नयी परवाज़ दे दो .

Saturday, August 20, 2011

तुम और मैं ...अच्छे ,सच्चे दोस्त

तुम और मैं
एक अच्छे ,सच्चे दोस्त .
पर,अब तुम और तुम्हारे कदम
अचानक ...
दोस्ती की सीमा लांघने लगे हैं
प्रेम की राह पर जाने लगे हैं .
तुम जो यूँ प्रेम पथ पर
आगे बढ़ने को आतुर हो,अकेले
सोच कर के देखो तो ज़रा
अच्छी दोस्त होने के नाते
मैं सब समझते बूझते
कि
मेरी "न" तुम्हें दुःख पहुंचायेगी
अपनी जुबां से इनकार कर पाउंगी ??

अच्छा,चलो ,मान लो जो हिम्मत कर
मैं तुम्हारे प्रेम निवेदन को ठुकरा भी दूं
तो,क्या मैं इसके अपराधबोध से
स्वयं ग्रसित नहीं हो जाऊँगी.
इसलिए,
मेरा यही अनुग्रह है तुमसे
कि अपनी सीमा में रहो
मेरी सीमाएं भी न भंग करो
क्यूंकि...
मेरी न सुनने के बाद
तुम जब व्यथित होगे
तो तुम यह तय जानो
मुझे भी असहज कर दोगे ,
इसलिए
अभी,कृपया ऐसे आमंत्रण मुझे न भेजो
जिसके उत्तर में चुप्पी साध लेने से मुझे भी कष्ट हो
और मेरी इस चुप्पी से तुम्हारी आत्मा भी त्रस्त हो .


अभी,अपनी परिधि मत पार करो
कटाक्षों से मुझपे मत वार करो .
तुम्हारे पूछे सारे प्रश्न
अनुत्तरित ही रह जायेंगे
क्यूंकि,प्रेम डगर पे मुड के
अलग खड़े हो गए हो जाके .
मैं मित्रता की पक्षधर ...तुम प्रेम पुजारी हो गए हो .



मुझे प्लीज़ कुछ समय दो
कि मैं निकल पाऊँ उस दोस्ती की सीमा से
छोड़ आये हो तत्परता से तुम जिसे ...कहीं पीछे
और फिर...............
हम दोनों.....एक साथ
तोड़ कर मित्रता का पाश
प्रवेश करें ,प्रेम की परिधि में
एक दिन...साथ-साथ;कुछ समय बाद .

Thursday, August 18, 2011

प्रेम किया है गुनाह नहीं


कई दिन सोचने के बाद
आज मेरा ..तुमसे मिलने आना
तुम्हारे दरवाज़े तक जाकर
बिन मिले ही मेरा लौट आना .
वापस आकर ,सोचती हूँ
कि किस बात से डर गयी
समाज से या उसके ठेकेदारों से ..
तुमसे या फिर अपने आप से .

सच पूछो तो ...लोगों का डर नहीं था
असल में ,तुम्हारे बर्ताव का डर था ..
मैं न डरूं किसी से ,पर तुम तो डरते हो
अपनी छवि का भी बहुत ख्याल करते हो .

तुम्हारे दरवाजा खोलने से लेकर
मुझे यूँ आया देखकर खुश होने तक .
तुरंत ..फिर इधर-उधर देखना
कि आस पास कोई देख तो नहीं रहा
घर के अंदर ,परिवार के बीच ले जाने की झिझक
साथ ही साथ ...मेरा साथ पाने की ललक .
सबके आगे बस औपचारिकता निभाना
अपनी खुशी को जाहिर ना होने देना ......
....ये सब
मैंने दरवाजा खटखटाने से पहले ही देख लिया था.

तुम्हीं कह दो...
डर से भरे उस दमघोंटू माहौल में...
या फिर औपचारिकतावश बोले गए तुम्हारे कुछ शब्द सुनने
मैं क्यूँ आती???
मैं आई..तुमसे मिलन की आस लिए
लौटना पड़ता तुम्हारी झलक और दो चार नीरस बातें साथ लिए
साथ ही दिख जाती कुछ टेडी नज़रें
दबी मुस्कानें ..कुछ आक्षेप ..कुछ कटाक्ष .
इसलिए-
अब तय किया है
कि आना ही होगा अगर मुझे
तो अब तब आऊँगी ...
जब तुम मुझसे मिलने और बोलने में ...डरोगे नहीं .
जब,
अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने में हम घबराएंगे नहीं
डरेंगे नहीं और ना ही शर्मायेंगे कि हमने प्रेम किया है
क्यूंकि
प्रेम ही तो किया है
गुनाह थोड़े ही किया है .

Tuesday, August 16, 2011

मेरा अतीत

मैं बहुत चाहती हूँ मनमीत,
कि मेरा यह अतीत...
मेरे वर्तमान में आ-आ कर
यूँ न रुलाये मुझे बार-बार .
अतीत बन कर ही रहे सदा
काल की गति के साथ ही बहे...
समय सीमा का न करे उल्लंघन
न याद दिलाए वो"स्नेहिल बंधन"

समय सदा सबके लिए आगे ही बढ़ता है
पर,मेरे जीवन में क्यूँ ये लौट-लौट आता है???
कोई तो बताए,क्या करूँ मैं
इस पागल दिल का अपने
जो सुनता ही नहीं मेरी फ़रियाद
हमेशा करता है तुम्हें ही याद.


जब भी मैं तय करती हूँ,ये...
....कि तेरे दिल का मेरे दिल से
वो नाता कल से तोड़ लूंगी
उसे न फिर कभी जोडूगी .
तब,यह आने वाला कल
आगे ही बढ़ता जाता है,प्रतिपल
और... मैं ,उसका पीछा कर
बैठ जाती हूँ थक-हार कर .

मैं इंतज़ार ही करती रहती हूँ...
उस कल के लिए ही जीती हूँ ...
जब ,सही मायनों में
मैं तुम्हें भूल पाऊँगी
तुमसे अलग हो पाऊँगी .

वो कल आता ही नहीं ...
शायद,आगे भी न आये कभी
क्यूंकि
दिल के किसी कोने से
आज भी यही आवाज़ आती है
कि,
मैंने तुम्हें अपनी धडकन माना है
और
जब तक हैं सांसें मुझमें
तेरा प्यार रहेगा ज़िंदा मुझमें .

Friday, August 12, 2011

रोज़ मिलना...औपचारिकता ??


रोज़ ,तुम्हारा ...
मुझसे मिलना, बातें करना
हंसना-बोलना,साथ-साथ चलना
तुम्हें,अटपटा सा लगता है ,ये सब करना.
लगता है कि प्यार में ये कैसा दिखावा?
इन औपचारिकताओं की क्या आवश्यकता है ??
इन प्रदर्शनों में खुद को क्यूँ कर सीमित करना है ???

हमारी मित्रता तो यथार्थ के धरातल पर टिकी है.
वास्तविकता के आधार पर उसकी नींव टिकी है
शायद,इसीलिए ...
तुमने यह कहा मुझसे
कि
प्रेम तो मूक अभिव्यक्ति है...
बिन शब्दों के भी सब समझा जा सकता है
बिन मिले भी एक दूसरे को जाना जा सकता है
यही तो प्रेम की पहली सीढ़ी है...
"रोज मिलने से कहीं अच्छा है ,
कि जब ज़रूरत हो तब मैं तुम्हारे पास हूं.
ऐसे बात करने से क्या लाभ
कि जब तुम तन्हाई से घबराओ तब मैं न पास हूँ.
रोज साथ चलने से अच्छा है,ज्यादा
कि जब तुम गिरो तब संभालने को मेरा हाथ हो.

तुम्हारे कहे गए ये सारे वाक्य ,
रात दिन मुझे याद आते हैं.
पर,तुम्हारी कही इन बातों का क्या कोई फायदा है?
क्यूंकि क्या तुम यह बात नहीं समझते हो,
कि रोज बोलना शायद ज़रूरी न हो
पर बिन बोल क्या तुम समझ जाओगे
कब मुझे है क्या परेशानी,कब मुझे है ज़रूरत तुम्हारी
मात्र प्रेम के दृढ आधार के बाल पर जान पाओगे...सब?

जब मिल सकते हों
तब भी रोज मिलना,साथ चलना आवश्यक नहीं
पर एक बात बता दो फिर,कि
क्या तुम्हारे पास है वो शक्ति,
कि बिन मेरे साथ चले ही
ठोकर कहाँ लगी,कहाँ मैं गिरी
तुम जान जाओगे....??

चलो,मैंने...इस सत्य को स्वीकार लिया
कि अनूभूतियों का,भावनाओं का अपना मोल है
पर ,यह जो व्यवहारिक दुनिया है ...इसका क्या ?
मेरे...तुम्हारे जैसे इंसानों में
अंतर्यामी होने का गुण है क्या?
जो बिन कहे,मिले हम सब जान -समझ लें.
बिन मिले,बोले,साथ चले
ज़रूरत के समय चाह कर भी ...
साथ नहीं दे पायेंगे...
पता कैसे चलेगा कि ..
कौन कब खुश है,रुष्ट है...या कोई कष्ट है.

तुम भी तो कहते हो भावनाओं से ही इंसान ...इंसान बनता है
फिर उसे दिखाने में शर्म कैसी और क्यूँ ?
मुझे इंसान रहने दो...मशीन मत बनने दो
क्षुद्र इंसान हूँ मैं,यह मत भूलो
प्रेम यूँ तो इन सबसे उपर है
पर इसके पोषण में यही छोटी बातें,मुलाकातें
अपना योगदान देती हैं .
ये एक-एक इकाई ही जब जुड़ती है
प्रेम नवीन होता जाता है
ठहराव से बचता है
बिना अवरोध बहता जाता है

Monday, August 8, 2011

अब हूँ.....तुम्हारे साथ


तुम्हारे हाथ में
मेरा हाथ सौंपा गया
और मैं,तुम्हारा हाथ थाम
तुम्हारे जीवन में आ गयी.
अनजाने में ही...
अपने पीछे के सारे दरवाज़े
लौट जाने के सारे रास्ते
खुद ही बंद कर आई .
अब,हूँ...तुम्हारे साथ
तुम्हारे किये झूठे वादों,
तुम्हारी ली झूठी कसमों
अपने टुकड़े हुए विश्वास
रुंधी हुई प्यार की आवाज़
की....
अर्थी को ढोते...हुए

Friday, August 5, 2011

जल ही जीवन है

पानी ही जीवन है
सब जानते हैं
सब मानते हैं.
पर,जब वही पानी
बहता है मद्धम-मद्धम
तुम्हारी आँखें करके नम
तब,
पता नहीं क्यूँ ...??कैसे??
भीग जाता है मेरा भी मन .
अजीब सी उलझन होती है
गला रुंध जाता है.
उस वक्त ....
यह पानी ,
जीवन का पर्याय नहीं लगता
पानी का यह रूप ...
बिलकुल भी
अच्छा नहीं लगता .

Wednesday, August 3, 2011

बौराये से ..

तुम आये जीवन में
और..................
बदल गया है
मेरे दिल का मौसम
सावन ही सावन है ...आजकल ,यहाँ

अलसाई सुबहें..
मदहोश रातें हैं .
नशीले बातें....
प्यार की बरसातें हैं .
थिरकती हवाएं ....
गुनगुनाती फिजाएं हैं.
टूटती बंदिशें...
गाती हुई धडकनें हैं.
बहकती सांसें है
सुरमयी से लम्हें हैं .
यह सब मेरे अपने हैं
और
इनके साथ हैं
बौराये से
मैं और तुम ..................

सच,कहना...
लगता है न
कि जब से हम मिले हैं
सावन है...
नेह की घटायें हैं
जिनसे इश्क बरसता है
नशे के साथ मिला हुआ

भीगे से...बहके से...दहके से "हम"

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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