तुम्हें शायद एहसास नहीं
कि,जब तुमने कहा था ,
तस्वीर में मुस्कुराते हुए......
मैं बहुत अच्छी लग रही थी .......
कि
केवल तस्वीर देख कर
मैं या मेरी मुस्कराहट कैसी हैं
तुम नहीं जान सकते .
उस तस्वीर के पीछे
मैं हूँ जिसे सवेरे सारा काम निपटा कर
दरवाज़े पे ताला लगा कर
काम पे जाने में कोफ़्त होती है.
गर्मी की दोपहर में
घर वापस आकर
ताला खोलकर
खुद पानी ले कर पीने से
जो उदासी जमी होती है
बह निकलती है जिसकी आँखों से.
शाम को अकेलेपन की नीरसता
टी.वी.पर आने वाले कार्यक्रमों से भी नहीं जाती.
बोझिल होती शाम भारी हो
रात में बदल जाती है,
ड्यूटी कि तरह.........
उसे ,फिर मेज़ पर रख
अकेले बैठ निगलना होता है
और .....
.....तन्हाँ ,करवट बदलते-बदलते
नींद के इंतज़ार में
भोर हुए कहीं आँख लगती है.
जो घड़ी के अलार्म से जा कर खुलती है.
सवेरे,उठती हूँ
अलसाई हुई,मैं
फिर से इस जीने कि यंत्रणा के साथ
पर तस्वीर में
मैं मुस्कुराते हुए बहुत अच्छी लगती हूँ
क्यूंकि
कभी कोई तस्वीर मुक्कमल नहीं होती
कि,जब तुमने कहा था ,
तस्वीर में मुस्कुराते हुए......
मैं बहुत अच्छी लग रही थी .......
कि
केवल तस्वीर देख कर
मैं या मेरी मुस्कराहट कैसी हैं
तुम नहीं जान सकते .
उस तस्वीर के पीछे
मैं हूँ जिसे सवेरे सारा काम निपटा कर
दरवाज़े पे ताला लगा कर
काम पे जाने में कोफ़्त होती है.
गर्मी की दोपहर में
घर वापस आकर
ताला खोलकर
खुद पानी ले कर पीने से
जो उदासी जमी होती है
बह निकलती है जिसकी आँखों से.
शाम को अकेलेपन की नीरसता
टी.वी.पर आने वाले कार्यक्रमों से भी नहीं जाती.
बोझिल होती शाम भारी हो
रात में बदल जाती है,
ड्यूटी कि तरह.........
जिसे अपना पेट भरने भर को
कुछ पकाना होता हैउसे ,फिर मेज़ पर रख
अकेले बैठ निगलना होता है
और .....
.....तन्हाँ ,करवट बदलते-बदलते
नींद के इंतज़ार में
भोर हुए कहीं आँख लगती है.
जो घड़ी के अलार्म से जा कर खुलती है.
सवेरे,उठती हूँ
अलसाई हुई,मैं
फिर से इस जीने कि यंत्रणा के साथ
पर तस्वीर में
मैं मुस्कुराते हुए बहुत अच्छी लगती हूँ
क्यूंकि
कभी कोई तस्वीर मुक्कमल नहीं होती
(प्रकाशित)