Tuesday, March 29, 2011

कभी कोई तस्वीर मुक्कमल नहीं होती

तुम्हें शायद एहसास नहीं
कि,जब तुमने कहा था ,
तस्वीर में मुस्कुराते हुए......
मैं बहुत अच्छी लग रही थी .......
कि
केवल तस्वीर देख कर
मैं या मेरी मुस्कराहट कैसी हैं
तुम नहीं जान सकते .

उस तस्वीर के पीछे
मैं हूँ जिसे सवेरे सारा काम निपटा कर
दरवाज़े पे ताला लगा कर
काम पे जाने में कोफ़्त होती है.
गर्मी की दोपहर में
घर वापस आकर
ताला खोलकर
खुद पानी ले कर पीने से
जो उदासी जमी होती है
बह निकलती है जिसकी आँखों से.
शाम को अकेलेपन की नीरसता
टी.वी.पर आने वाले कार्यक्रमों से भी नहीं जाती.
बोझिल होती शाम भारी हो
रात में बदल जाती है,
ड्यूटी कि तरह.........
जिसे अपना पेट भरने भर को
कुछ पकाना होता है
उसे ,फिर मेज़ पर रख
अकेले बैठ निगलना होता है
और .....
.....तन्हाँ ,करवट बदलते-बदलते
नींद के इंतज़ार में
भोर हुए कहीं आँख लगती है.
जो घड़ी के अलार्म से जा कर खुलती है.

सवेरे,उठती हूँ
अलसाई हुई,मैं
फिर से इस जीने कि यंत्रणा के साथ
पर तस्वीर में
 मैं मुस्कुराते हुए बहुत अच्छी लगती हूँ
क्यूंकि
कभी कोई तस्वीर मुक्कमल नहीं होती

(प्रकाशित)

Monday, March 28, 2011

क्रिया और प्रतिक्रिया का सिद्धांत ..........

क्रिया और प्रतिक्रिया का सिद्धांत ..........
इस सिद्धांत को मैंने भी पढ़ा था
जैसे,
आम विद्यार्थी नंबरों के लिए बहुत कुछ पढ़ लेता है 
लेकिन ,आज जा कर ........
यह सिद्धांत समझ में आया है   
जब  ,
तुम्हारे चले जाने के बाद   
मैंने,बलपूर्वक   
तुम्हारी यादें ,तुमसे जुडी सारी बातें   
दिल में दबाने की  
और
आँखों  में अश्कों  को संभालने की कोशिश करी    .
मैं,
नाकामयाब रही 
क्यूंकि  
क्रिया की प्रतिक्रिया हुई 
जितना जोर मैंने गुज़रे पलों   को भूलने में लगाया

बीते पलों ने उतना ही  ज़्यादा मुझे सताया
जब-जब तुम्हारी याद के उस  दर्द  को सीने  में दफनाया
कहर ढाने वो  बार  -बार लौट  आया
आंसुओं  को आँखों के जेल  में कैद करना चाहा  
वो सैलाब बनकर सारे बंधन तोड़ आया
अब तुम्ही बता दो ,मैं क्या करूँ  ?
कैसे तुम्हे भूलूं  ,न  याद
करूँ  ?
भूलने की कोशिश  में दुगना  याद  करने  लग  जाती  हूँ 
दूर जाने के प्रयास में विफल हो तुम्हें,अपने और करीब पाती हूँ

Sunday, March 27, 2011

मिलन के बाद तुम्हारी जुदाई...............

मिलन के बाद तुम्हारी जुदाई...............
जैसे ,
जलती हुई आग पर एकाएक  पानी पड़ जाना
मद्धम-मद्धम बहती हवा का एकदम से रुक जाना
हँसते-हँसते अश्कों का बेबात छलक   जाना
चमकते सूरज के आगे बदली का छा जाना
सुरीले गीत का एक ही पल में बेसुरा हो जाना
सुबह का कोई हसीं सपना अधूरा रह जाना
किसी कश्ती का किनारे पे आकर डूब जाना

Friday, March 18, 2011

पेंचकस

बाज़ार में,
अचानक .....
बरसों के बाद,
तुम्हारा दिखना .................
एक पेंचकस की तरह 
मेरे दिल में लगे उस प्यार के पेंच को 
गहरे तक कस गया ..........
और, मैं..............
कसमसा के रह गयी 

Wednesday, March 16, 2011

तुम्हारी............


तुम्हारी  चुप्पी .....जैसे  दिल  की  धड़कन  रुक  सी  गयी  हो
तुम्हारी  बेरुखी .......जैसे  सूरज  को  ग्रहण  लग  गया  हो .
तुम्हारी  नाराजगी .........जैसे  मुँह कसैला  सा  हो  जाए .
तुम्हारी  याद ............एक  एहसास  की  सब  कुछ  ठीक  है .

तुम ......

जिस  सोच  में  मैं  हूँ  डूबी  हुई ,
उस  चिंता  का  एकमात्र  चिंतन  हो  तुम .
जिससे  सदा  से  मैं  हूँ  बंधी  हुई ,
हाँ ,वही ,मेरा  बंधन  हो  तुम .
तुम्हारी  जुदाई  भी  है  मैंने  सही ,
इस  पीड़ाकुल मन  का  क्रंदन  हो  तुम .
तुम्हे  देख  कर  नज़रें  तुम  पर  ठहर  गयी ,
आँखों  से  भेजा  मूक  आमंत्रण  हो  तुम .
प्यार  की  परिभाषा   मैंने  तुमसे  जानी ,
प्रेम  का  पूर्ण  आलिंगन  हो  तुम .
भावनाएं  जो  मेरे  इस  दिल  में  उपजी ,
उन  भावनाओं  का  स्पंदन  हो  तुम .
तुम्हें  देख  कर  जो  बढ़  गयी ,
हाँ  ,वही  दिल  की  धड़कन  हो  तुम .
जिसके  सहारे  मैं  ये  भव-सागर  पार  करूंगी ,
मेरे  वही  अवलंबन  हो  तुम .

Sunday, March 6, 2011

सूनापन ..............

मेरा सूनापन ..............
तुम्हारा  सूनापन ...............
चलो ,
गणित  के  किसी  सवाल  के  जैसे
समान  चीज़  को  काट  दें
और  शुन्य  कर  लें .
मेरा  ,तुम्हारा  सूनापन
आपस  में  कट  जाएँ
और  हो  जाएँ  ख़तम
फिर  हमारे  प्यार  की  पूर्णता  में  से  पूर्ण  निकले  भी  तो .......
शेष  रह  जाए
केवल  प्यार  और  अपनापन

Saturday, March 5, 2011

तुम्हारे वादे

तुम्हारे वादे,तुम्हारी कसमें
झूठ या कह लो सच का छलावा
एक पल हैं तो दूजे पल नहीं
जैसे................
जाते हुए वक़्त की पुकार
सावन के महीने में बादल का आकार
पानी पर खिंची रेखा
क्षितिज पर फैला धोखा
धूप  निकलने पर ओस की बूँद
जंगल में फैली अनसुनी गूँज
या कच्ची नींद का सपना
झूठा होकर भी लगे अपना

Wednesday, March 2, 2011

अलग होना

नाखून या रिश्ता सड़ रहे हों
तो,अलग होना पीड़ादायक नहीं होता
पर सांस ले रहे रिश्ते
या जुड़े हुए नाखून को
यूँ खींच कर अलग करना
बहुत तकलीफदेह होता है
बहुत पीड़ादायक...............
तुम खुद मुझे छोड़ते या मैं तुम्हें
तो मुझे दुःख नहीं होता
पर,तुम्हें जबरन मेरी ज़िन्दगी से निकाला गया
इस बात ने मुझे अन्दर तक
हिला कर रख दिया है
दर्द हुआ है मुझे बिलकुल वैसा
किसी का नाखून खींच कर
उसकी खाल से अलग कर दिया जाए जैसा

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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